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2122 2122 2122 212

दोष उनको दे रहे क्यूँ आप कुछ तो बोलिये
मौन यह कबतक चलेगाआज मुँह तो खोलिये।1


सिर रहे धुन क्या मिला आगे मिलेगा और क्या
याद करनाआप क्यूँ ऐसे किसीके हो लिये।2

पर्व था जनतंत्र का चलते जरा आगे कहीं
मिल गये नाले समझ नद आपने मुँह धो लिये।3

हाथ में डोरी पड़ी थी हाँकते रथ और भी
घिर गयी क्षणभर घटा ढीले पड़े फिर सो लिये।4

आपके वरदान से राजा बने कितने सभी
मिल गया थोड़ा कहीं फिर तो बहुत कुछ खो लिये।5

रंक-राजा में किया कब आपने अंतर कभी
गा गया वह निज कथा फिर आप थोड़ा रो लिये।6

खेत सूखे रह गये अपने कभी सोचा नहीं
थी जमीं उसकी वहीं सब बीज अपने बो लिये।7

बार कितनी ही तुलेंगे वाकये सुन लें अभी
बैठिये चुपकर कभी अपने वजन को तोलिये।8

नींद की भी कुछ हदें हैं सो रहे कितना यहाँ
जग रहा जग जागिये भी आँख अपनी खोलिये।9

मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:07am

खेत सूखे रह गये अपने कभी सोचा नहीं

थी जमीं उसकी वहीं सब बीज अपने बो लिये।...बहुत खूब, बधाई आ. मनन जी ! सादर  

Comment by Manan Kumar singh on February 1, 2016 at 11:45pm
आदाब कुबूल फरमायें,कबीर साहब।
Comment by Manan Kumar singh on February 1, 2016 at 11:42pm
जनाब समर कबीर जी, हौसला आफजाई तथा सलाहगोई का शु क्रिया ,आपकी सलाह गौर तलब है।स्नेह बनाये रखें।
Comment by Samar kabeer on February 1, 2016 at 10:51pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
पांचवें शैर के ऊला मिसरे का आख़री शब्द "सभी की जगह "यहॉं" करलें तो कैसा रहेगा ?

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