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टूटे हुए मकान का सामान बन गये (तरही ग़ज़ल 'राज ')

221  2121   1221   212

अपने लहू से आज वो अन्जान बन गये

टूटे हुए मकान का सामान बन गये

 

ज़ज्बात से किसी को यहाँ वास्ता नहीं

ड्राइंग रूम में रखा दीवान बन गये 

 

बेगानों की तरह रहे अपने ही देश में

बस चार पाँच दिन के ही मेह्मान बन गये

 

अपने ही घर में किश्तियाँ महफूज़ हैं कहाँ

साहिल के आस पास ही तूफ़ान बन गये

 

छोड़ी कसर न देखिये कुदरत को लूटकर

आफ़ात आ पड़ी तो अब इंसान बन गये

 

करतूत वो करें किसी शैतान की तरह

क़ानून की निगाह में नादान  बन गये

 

भगवान बनते फिरते हैं दिन के उजाले में

खुर्शीद ज्यों ही ढल गया शैतान बन गये

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 31, 2015 at 11:53am

बहुत- बहुत शुक्रिया गुमनाम जी .

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 30, 2015 at 7:38pm

बहुत खूब ............ अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई ................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 30, 2015 at 2:08pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी 

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 12:58pm
शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 11:40pm

मोहतरम तस्दीक जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया| आखिरी शेर मेरे हिसाब से तो बा बह्र है |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 29, 2015 at 8:59pm

मोहतरमा राजेश कुमारी जी ,..... बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ....... आखरी शेर के ऊला मिसरे में कुछ रवानगी में। ...... देख लीजियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:46pm

आ० डॉ० गोपाल भाई जी आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:45pm

आ० सतविंदर कुमार जी आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:44pm

तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया गुमनाम पिथौरागढ़ी जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 29, 2015 at 8:43pm

आ० नीरज कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका .

कृपया ध्यान दे...

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