For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लहरों के सँग बह जाने के अपने ख़तरे हैं (ग़ज़ल)

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

 

लहरों के सँग बह जाने के अपने ख़तरे हैं

तट से चिपके रह जाने के अपने ख़तरे हैं

 

जो आवाज़ उठाएँगे वो कुचले जाएँगे

लेकिन सबकुछ सह जाने के अपने ख़तरे हैं

 

सबसे आगे हो जो सबसे पहले खेत रहे

सबसे पीछे रह जाने के अपने ख़तरे हैं

 

रोने पर कमज़ोर समझ लेती है ये दुनिया

आँसू पीकर रह जाने के अपने ख़तरे हैं

 

धीरे धीरे सबका झूठ खुलेगा, पर ‘सज्जन’

सबकुछ सच-सच कह जाने के अपने ख़तरे हैं

 ----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2015 at 10:05pm

शुक्रिया आदरणीय लडीवाला जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2015 at 10:05pm

शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायन जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 18, 2015 at 5:20pm

बेहतरीन ग़ज़ल रचना हुई है श्री धर्मेन्द्र सिंह  जी  बधाई  स्वीकारे 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2015 at 2:43pm

आ० धर्मन्द्र जी - बहुत ही खूबसूरत खतरे हैं . सादर .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:41am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:41am

बहुत बहुत आदरणीय गिरिराज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:41am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय रवि शुक्ला जी, आप सही कह रहे हैं। लंबा रदीफ़ लेने पर ग़ज़ल में एकरसता आ ही जाती है। यहाँ भी ऐसा हो रहा है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:39am

शुक्रिया आदरणीया  राजेश कुमारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 17, 2015 at 11:35am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2015 at 11:25pm

बढिया है.  चित भी मेरा, पट भी मेरा. मिसरा उला की विसंगतियों को मिसरा सानी की सीमाओं से बराबर का जोड़ मिल रहा है. इस ग़ज़ल पर आपकी अपनी व्यक्तिगत छाप है. 

शुभेच्छाएँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service