For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

, लक्ष्मण- रेखा(लघुकथा)

शाम को देश के हर शहर की तरह मेरे शहर के बाज़ारों में भी बहुत भीड़ होती है I बाज़ार की सड़क के दोनों तरफ खड़ी गाड्यिां के बीच रह गई  सड़क पर हर कोई तेज़ी से आगे निकलने की कोशिश करता दिखाई देता है Iचाहे वो  पैदल,टू-व्हीलर रिक्शा,साईकल व कार पे सवार हो, आज मैं  भी तेज़ी से  हर तरह की भीड़ को चीरता  हुआ, बस स्टॉप की और बढ़ रहा था,मगर मेरा शरीर साथ नहीं दे रहा था I इस लिए लोकल बस का इंतजार करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था I  थ्री- व्हीलर स्टॉप आते ही मैं रुक गया I वहाँ मेरी कालोनी को जाने वाले एक थ्री- व्हीलर खड़ा था, वैसे मैं थ्रीविलर पर बहुत कम ही गया था, मगर आज ......,I

थ्री- व्हीलर में  अभी दो सवारियाँ आ के बैठी थी I मैं भी थ्री- व्हीलर में  बैठ गया I थ्री-व्हीलर के  पास ही एक पतले शरीर की लडकी खड़ी थी, सवारियाँ उसे देखते हुए, धीरे धीरे थ्री- व्हीलर में  बैठती जा रही थी Iमगर वह लड़की न ही इस पर और न ही किसी और थ्री-व्हीलर पर बैठ रही थी I मेरे मन मे  उस के बारे  कई तरह के सवाल पैदा हो रहे थे I और कुछ के जवाब मुझे खुद से ही मिल रहे थे I मगर वहाँ खड़ी लड़की के सबंध में  अजीब ख्याल उठ रहे थे I  जिनको  रोकने की कोशिश करता, मगर सफल न हो पाता I

शायद दूसरी सवारियाँ भी उस लड़की के बारे मेरी तरह ही सोच रहीं होंगी ,इतने में थ्री- व्हीलर पूरी तरह भर गया I  ड्राईवर के साथ वाली सीट पर एक आदमी अपने  कुत्ते के बच्चे के  साथ आ के  बैठ गया, मगर  वह लड़की  पता नहीं किस सोच में  गुम  अभी भी वहाँ खड़ी थी I  थोड़ी देर के बाद वह लड़की अचानक थ्री- व्हीलर के आगे से होती हुई ड्राईवर की सीट पर आ कर  बैठ गई I सभी उस की तरफ देखने लगे I तब उसने  थ्रीविलर स्टार्ट किया और  वे आगे की  तरफ चलने लगा I अब मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी सोच में खीचीं लक्ष्मण रेखा के उस पार पहुँच गया हो, और  उसका थ्री- व्हीलर तेज़ी पकड़ने लगा I

.

"मौलिक और अप्रकाशित"

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 6, 2015 at 5:16pm
अच्छी कहानी है , बहुत अच्छी कहानी है , भारतीय परिवेश के लिए। हाँ , आज की दुनिया को देखें तो , कितनी लक्षमण रेखाएं हैं जिनकी सीमायें बदलनी चाहिए , जरूरी नहीं , बहुत जरुरी है।
सम्प्रति इस कहानी पर बधाई , आदरणीय मोहन बेगोवाल जी , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 9:09am
क्षमा सहित, आदरणीय कृपया शीर्षक को सुव्यवस्थित कर लें, तो बेहतर लगेगा। 'लक्ष्मण-रेखा' (लघुकथा)
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 8:13am
वाह सर, दिल ख़ुश भी हुआ और नये कथानक पकड़ने की कला, पंच मारने की कला, कथा में सुंदर प्रवाह बरकरार रखने की कला भी सीखने को मिली। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीय मोहन बेगोवाल जी । अब हम सभी को अपनी सोच को विस्तार देने की कोशिश करनी चाहिए। बहुत ही उम्दा समसामयिक प्रेरक प्रस्तुति।
Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 7:48pm

थोड़ी देर के बाद वह लड़की अचानक थ्री- व्हीलर के आगे से होती हुई ड्राईवर की सीट पर आ कर  बैठ गई I सभी उस की तरफ देखने लगे I तब उसने  थ्रीविलर स्टार्ट किया और  वे आगे की  तरफ चलने लगा I अब मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी सोच में खीचीं लक्ष्मण रेखा के उस पार पहुँच गया हो, और  उसका थ्री- व्हीलर तेज़ी पकड़ने लगा I

हार्दिक वधाई मोहन जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 7:46pm

आदरणीय मोहन बेगोवाल सर बहुत ही शानदार कथानक पर बेहतरीन लघुकथा बुनी है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. पंचलाइन और शीर्षक के लिए विशेष बधाई निवेदित है सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
1 hour ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service