For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ सुखनवर साथ चल -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

दौर बदला है, बदल जा,   ऐ सुखनवर साथ चल 

सोचता है जिस जबां में, उस जबां में लिख ग़ज़ल

 

जिंदगी बदलाव है...... गर थम गए तो है कज़ा

आज ही किस्मत बदल जाए जरा खुद को बदल

 

जब भरोसा होगा अपनी जात पर खुद आपको

हौज़-ए-दिल में तब खिलेंगे कामयाबी के कँवल

 

खौफजद को मारती है बारहा ये मौत पर

जंगजू की जिंदगी में इक दफा देती दखल

 

खौफ़ ने जब से शराफत को निकम्मा कर दिया

कह दिया हमने सदाकत से कि तू खुद ही संभल

 

खुद सुखन पैदा करेगी अपना इल्मे-फ़लसफ़ा

तज्रिबा अपना सुना बस, छोड़ औरों की नक़ल

 

कब जुरूरत दोस्तों को, दुश्मनों को कब यकीं?

फिर सफाई दे रहे हो किसलिए यूं आजकल?

 

इल्मे-दुनिया से हुए नापाक, हैरां, बदगुमां

इस मुक़द्दस इल्म से पाया लताफ़त का फज़ल

 

तब नसीहत का पिटारा बाअदब लौटा दिया

जब मसाफ़े-जीस्त में नासेह देखे नाअहल

 

आज फिर अहले-जहां का जश्ने-मातम हो गया

ये सदा आलम में छायी- हो रहम दस्ते-अजल

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

लताफ़त- नम्रता,  मुक़द्दस-आध्यात्मिक, मसाफ़े-जीस्त- जीवनयुद्ध, नाअहल-अक्षम/ क्षमताहीन

Views: 1345

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 12:24am

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी आपकी दाद से मुझे हमेशा संबल मिलता है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on October 31, 2015 at 10:45pm
वाह! मिथिलेश जी ... बहुत ही समसामयिक मगर कालातीत ग़ज़ल...बधाई..
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 30, 2015 at 4:59pm

मिथलेश जी............. वाह वाह !!!!!

खौफ़ ने जब से शराफत को निकम्मा कर दिया

कह दिया हमने सदाकत से कि तू खुद ही संभल| ................बधाई |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 2:43pm

खौफजद को मारती है बारहा ये मौत पर

जंगजू की जिंदगी में इक दफा देती दखल...बेहतरीन 

खुद सुखन पैदा करेगी अपना इल्मे-फ़लसफ़ा................अपना या अपनी थोडा दुबिधा में हूँ मुझे लगता है अपनी ज्यादा सही रहेगा  

कब जुरूरत दोस्तों को, दुश्मनों को कब यकीं?

फिर सफाई दे रहे हो किसलिए यूं आजकल? दिल  को छू गया 

आदरणीय मिथिलेश जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 9:36pm

आदरणीय रवि जी आपकी दाद मेरे लिए बहुत मायने रखती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 9:35pm

आदरणीय नीरज जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Ravi Shukla on October 29, 2015 at 8:24pm
आदरणीय मिथिलेशजी एक खूबबसूरत ग़ज़ल हम सब के साथ साझा करने के लिए आभार । दिली मुबारक बाद क़ुबूल करें । मोबाइल से इतनी दाद ही अभी क़ुबूल करें ।
Comment by maharshi tripathi on October 29, 2015 at 7:38pm

बहुत -बहुत धन्यवाद्  सर ,अब अर्थ स्पष्ट है |

Comment by Neeraj Neer on October 29, 2015 at 7:27pm

वाह बहुत आला दर्जे की गजल हुई है ... बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 5:52pm

संभवतः अब बात स्पष्ट हो जाए-

दुनिया दारी  से हुए नापाक, हैरां, बदगुमां

पर मुक़द्दस इल्म से पाया लताफ़त का फज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service