For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

साक्षी ने सारी सीमाएं विवाह पूर्व ही तोड़ दी थी ।विवश हो उसके प्रेम विवाह को सहमति देनी पड़ी लेकिन विवाह के मात्र आठ माह बाद तीन माह की पुत्री को लेकर लौट आयी थी । बिटिया तीन वर्ष की हो गयी थी ।साक्षी ने पुनः विवाह कर लिया बेटी ननिहाल में ही पल रही थी।इसी बात से संतोष था की वह ससुराल में रम जाय लेकिन -
" माँ अब मैं उस घर नहीं जाउंगी।"

"क्यों ? अब क्या हो गया ?"

"उसे पत्नी नहीं माँ के लिए नौकरानी चाहिए थी और वह तो पूरा कंगला हैं ,मैंने तो उसकी चमक देख ब्याह किया था।"

माँ स्वयं ही बड़बड़ा उठी ,वो कंगला हैं की नहीं पता नहीं परन्तु संस्कारों के मामले में तुम अवश्य कंगली हो ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on October 29, 2015 at 9:15am

  संस्कार का अर्थ है सही गलत का ज्ञान होना और ये   लड़के  लड़की दोनों के लिए बराबर आवश्यक है ,माँ  का दायित्व सही संस्कार देना तो है ही पर अगर बच्चे भटक जाएँ है तो  उन्हें सँभालने की कोशिश करना भी है ,  अच्छी कथा के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया अर्चना जी 

Comment by Nita Kasar on October 29, 2015 at 5:38am
माँ तो अच्छे संस्कार ही देती है,ये तो संतान की संगत,सोहबत का,महत्वाकांक्षाओं का असर ही है जो सुसंस्कारों का जुलूस निकाल देती है,बिगड़ैल माँ इतना कहने से गुरेज़ करती।कथा के ज़रिये आज केबदलते सामाजिक परिवेश पर उम्दा प्रहार किया है आपने बधाईयां आपको आद०अर्चना त्रिपाठी जी ।
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:39am
आदरणीय कांता जी,जाहिर हैं की ऐसे संस्कार माँ अपनी संतान को नहीं देती।यह तो तीव्र गति से बदलते सामजिक परिवेश का परिणाम हैं। सादर
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:36am
आदरणीय सुनील सरना जी ,वाकई में आज संस्कारों का कंगलापन समाज को खोखला कर रहे हैं ।सादर धन्यवाद आपका
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:32am
शुक्रिया आदरणीय राहिला जी ,हार्दिक धन्यवाद
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:31am
ह्र्दयतल से धन्यवाद आदरणीय मित्र शेख सहजाद उस्मानी जी ,आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी उत्कृष्ट मार्गदर्शन करती हैं ।सादर
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:26am
हार्दिक धन्यवाद मिथिलेश वामनकर जी ,उत्साहवर्धन के लिए
Comment by Archana Tripathi on October 29, 2015 at 12:25am
हार्दिक धन्यवाद कथा और अमूल्य समय देने और समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आदरणीय तेज वीर सिंह जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 10:13pm

 अादरणीया अर्चना जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by kanta roy on October 28, 2015 at 9:06pm
संस्कार से कंगली होना एक बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है । इन संस्कारों का प्रादुर्भाव कहाँ से हुआ ?
इतना कहकर क्या माँ छूट सकती है अपने देयता के दायित्व से ?
एक गम्भीर प्रश्न छोडती हुई ।
बधाई अादरणीया अर्चना जी इस तीक्ष्ण लघुकथा के लिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीया रक्षिता जी,  आपकी इस कविता में प्रदता शीर्षक की भावना निस्संदेह उभर कर आयी…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक शेर की विषय - वस्तु…"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service