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वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर-- (ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर

हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर

 

ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा मियाँ

आबजू गंभीर हो, बर-आब भी खामोश गर

 

अब्र ने सूरत बदल दी चैन हमको मिल गया 

चिलचिलाती धूप में साए सुहाने देखकर

 

हार जाता, खोजते इंसान, पर सद्शुक्र है

बंद दरवाजों की बस्ती में खुला था एक दर

 

बेबसी का सिलसिला, ये मुब्तला थमता नहीं

मिल गई परवाज़ लेकिन कट गए है आज पर

 

आदमी की ख्वाहिशों का पेट है कितना बड़ा

दो जहां है हाथ में पर कह रहा बाक़ी कसर

 

हाथ दोनों खोल के फ़य्याज़ मौला है खड़ा

कौन क्या हासिल करेगा जात पर ये  मुनहसर          आश्रित

 

तीरगी फिर तो मचल के बेवफा हो जाएगी

रात जब रोने लगेगी शाम की दहलीज़ पर

 

वक्त-रौ मौजे-समंदर मुन्तजिर होते कहाँ

मंजिलें हो दूर लेकिन कर शुरू गर्दे-सफ़र

 

गर खुदा से कुर्बतों की आरज़ू है आपकी

पाक हो रूहे-बशर और आप हो फर्दे-बशर

 

जान की बाजी लगाना है सफ़र ये, इश्क का

है बहुत गहरा समंदर एहतियातन तू उतर

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 20, 2015 at 4:46pm

वाह बहुत खूब गजल

Comment by दिनेश कुमार on September 20, 2015 at 7:37am
हाथ दोनों खोल के फ़य्याज़ मौला है खड़ा
कौन क्या हासिल करेगा जात पर ये मुनहसर


बेहतरीन अशआर कहे हैं आदरणीय मिथिलेश भाई। हर शे'र पर दिल से दाद स्वीकार करें।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 19, 2015 at 7:29pm

क्या कहने आ० मिथिलेश सर....आपकी गजलों का अपना कलेवर और तेवर है..बहुत कुछ सीखने को मिलता है!सभी शेर बेहतरीन..ढेरों दाद प्रेषित है!

Comment by Ravi Shukla on September 19, 2015 at 2:28pm
आदरणीय मिथिलेशजी क्या बात कही है आपने अशआर में वाह वाह क्या कहने
आदमी की ख्वाहिशो का .... इंसान की और और की हवस को खूब ही बयान किया है
बेबसी का सिलसिला ये मुब्तिला थमता नही मुब्तिला के मानी लिप्त होना या खोये रहना या जुड़े रहने से है फिर यहाँ समझ नही आया थोडा स्पष्ट करियेगा कही मसअला तो नही कह रहे ।
और आखिरी शेर तो ग़ज़ब का है
है बहुत गहरा समंदर एहतियातन तू उतर
मोती तो गहरे समंदर में ही मिलते है मिथिलेशजी जैसे ये शेर आप निकाल कर लाये है
ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल करे ।

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