For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लुटा हाला गया मुझ पर...गजल

बहर
1222/1222/1222/1222

अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर।
सितम इतने कहा से वो लेकर ढा गया मुझ पर।।

न बारिश है न सावन है हवा का भी नही झोंका।
ये कैसे गम के बादल हैं कहा से छा गया मुझ पर।।

चलो अब चाँद तारों तुम मेरी हालत पे हँस भी लो।
तुम्हे अच्छा स मौका है अमावस आ गया मुझ पर।।

इजाजत दे गए अपने चिरागों घर जलाने की।
जला दो उनकी यादें जो चुभा भाला गया मुझ पर।।

लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।
के वो तफसीसे मोहब्बत चला आरा गया मुझ पर।।

कभी दीपक जलाता था घरों में मैं मुहब्बत के।
उसी का रोष है मालिक लुटा हाला गया मुझ पर।।
मौलिक/अप्रकाशित

©आमोद बिन्दौरी

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2015 at 12:41pm

आदरणीय , गज़ल का बहुत सफल प्रयास हुआ है , दिली बधाइयाँ आपको ।
अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर -- इस मिसरे की कहन और तकतीअ  दोनो के विषय मे और सोच लीजियेगा

लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।    इस मिसरे मे न की जगह ना ( 2 मात्रा ) की ज़रूरत है , और  ना लिखने को सही नही माना जाता , सोचलीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 20, 2015 at 8:23pm

आदरणीय आमोद जी इस सुरीली बह्र पर बढ़िया प्रयास हुआ है बधाई.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 19, 2015 at 7:23pm

बहुत ख़ूब..बधाई भाई आमोद जी..प्रयासरत रहें!..शुभकामनायें!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 19, 2015 at 7:21pm

बहुत ख़ूब..बधाई भाई आमोद जी..प्रयासरत रहें!

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 19, 2015 at 11:57am
जी सर उत्साह वर्धन के लिए आभार नमन
Comment by Samar kabeer on September 18, 2015 at 11:41pm
जनाब अमोद जी,आदाब,इस प्रयास के लिये आपको बधाई,जनाब रवि शुक्ल जी ने आप को जो कहा है उस पर ध्यान दीजियेगा ।
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 3:08pm
आ रवि सर मतला की प्रथम पंती मुझे भी कुछ ठीक नही लगी
जैसे ही मुझे सही पंती मिलेगी मैं शुधर करूँगा

आप ने इतनी गंभीरता से गजल समीक्षा की
और वक्त दिए
आगे भी ऐसे ही मार्ग दर्शन करते रहे
मेरा वादा है
मैं अपने जीवन काल में
उम्दा गजल आप को भेट करूँगा
आप सभी को नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 3:02pm
आ श्याम नारायण सर बहुत बहुत आभार नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 3:00pm
आ रवि सर जी
बहुत बहुत धन्यवाद
नमन

सर
ये कैसा गम का बदल है
ही थी पंती मुझसे टंनकं त्रुटि हुई है क्षमा चाहुगा

और सर न के लिए गुणीजनों से
कई बार वार्ता हुई है
न को 1 मंत्रा भर है मगर
यदि उच्चारण दीर्घ है तो उसे
2गिना जा सकता है

बाँकी मैं नव हु तो आप सभी एक बार फिर इस न शब्द के लिए
जानकारी दे
कृपया
Comment by Ravi Shukla on September 18, 2015 at 2:47pm

आदरणीय आमोद जी सुरीला रुक्‍न लिया है आपने इस रचना के लिये

अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर। इस मिसरे में तक्‍तीअ फिर से कर के देख लें ज़ुल्म पहरा यहां गडबड़ लग रही है
सितम इतने कहा से वो लेकर ढा गया मुझ पर।। 

न बारिश है न सावन है हवा का भी नही झोंका।
ये कैसे गम के बादल हैं कहा से छा गया मुझ पर।। इस मिसरे में ये कैसे ब़म के बादल हैं बहुवचन और     छा गया एक वचन । काफिया के अनुसार ये कैसा ग़म का बादल करना पड़ेगा भाई

चलो अब चाँद तारों तुम मेरी हालत पे हँस भी लो।
तुम्हे अच्छा स मौका है अमावस आ गया मुझ पर।। अमावस मे चांद कहां हो सकता है ? सा को गिरा कर पढा जा सकता है शायद तो स क्‍यू लिखना

लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।
के वो तफसीसे मोहब्बत चला आरा गया मुझ पर।।

यहां भी असर न हो में 1 2 2 2 की जगह 1212 हो रहा है इसे असर गायब करने से 1222 तो हो जाएगा पर इस शेर को कुछ समय और दीजिये आमोद जी

बाकी तो गुणीजन ही बताएंगे ।

प्रयास के लिये बहुत बहुत बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service