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इखलास का ईनाम गरल कर के चल दिए

221 2121 1222 212
इखलास के ख़याल गरल कर के चल दिए।
अरमाने दिल तमाम तरल कर के चल दिए।।

शमशीरे ज़फ़ा ऐसे चली दिल के शहर पे
चुन चुन के सारे ख़ाब मसल कर के चल दिए।।

मेरी वफ़ा ए इश्क़ की कीमत तो देखिये।
चैन ओ सुकून में ही ख़लल कर के चल दिए।।

मेरे खुदा ए इश्क़ की रहमत तो देखिये।
सज़दे सलाम सारे विफल कर के चल दिए।।

अपनी भी आदतों को कहाँ हम बदल सके।
उनके करम कलम से ग़ज़ल कर के चल दिए।।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 8:55am
आदरणीय
मतले मे आप भर की जगह कर ही करना पड़ेगा
अन्यथा काफ़िया बिगड़ जायेगा
प्रयास के लिए बधाई
सादर
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 17, 2015 at 8:33am
आदरणीय समर कबीर सर प्रयासरत हूँ; आप लोगों के सुझाव इस दिशा में प्रकाश श्रोत का कार्य कर रहे हैं। सादर आभार और अभिवादन
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 11:24pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी,आदाब,पहले की तुलना में आपका प्रयास बहतर होता जा रहा है,जनाब शिज्जु 'शकूर' जी की बातों पर ध्यान दीजियेगा ,वो सही फ़रमा रहे हैं ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 9:23pm
आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर सादर अभिवादन।
सुझावों के लिए हार्दिक आभार।

ईनाम में गलती हुई है;
कतल अपभ्रंश रूप में प्रयुक्त हुआ है।

दूसरे शेर का पहला मिसरा बदलने का प्रयास करूँगा।। देर सबेर उसे बदल दूँगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 15, 2015 at 7:34pm
पहले की तुलना में रचना बेहतर है बधाई आपको। लेकिन ध्यान रहे सही शब्द ईनाम और कत्ल है सो ये दो मिसरे नियमानुसार ग़लत हैं दूसरे शेर का पहला मिसरा भी बेबह्र है

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