For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- थक गया मैं

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

समझा समझा कर हरजाई थक गया मैं
दुनिया फिर भी समझ न पाई थक गया मैं

मेरे घर में पाँव न रक्खा ख़ुशियों ने
बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं

पूरा करते करते सात सवालों को
कहता है अब हातिम ताई थक गया मैं

जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते
करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं

मेरी बुराई करते करते आज तलक
थक न पाई सारी ख़ुदाई थक गया मैं

मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया
दरवाज़े पर लिख दो भाई थक गया मैं

मिहनत मज़दूरी से पेट नहीं भरता
सहते सहते ये मँहगाई थक गया मैं

देखो मेरा हाथ "समर" के सर पर है
सच कहता हूँ 'सौरभ' भाई थक गया मैं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 939

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 8, 2015 at 10:26am

जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते
करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं

मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया
दरवाज़े पर लिख दो भाई थक गया मैं 

दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय समर भाई.

ग़ज़ल इस दफ़े निखर के क्या आयी है, हर शेर पर मन खुश रहा है. वाकई सद्यः स्नाता की तरह मोह लिया है इसने ! :-))

आदरणीय, मक्ते से निस्सृत मुहब्बतों केलिए दिल से आभारी हूँ.

वैसे, आपसी रूहानी तनाफ़ुर को समझते हुए भी कुछ आलिम सानी में भी तनाफ़ुर देखें..  ;-)

लेकिन रदीफ़ का कमाल तो है न - थक गया मैं ! ...   

हा हा हा...

इस अच्छी ग़ज़ल केलिए दिल से आदाब..

सादर

Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 2:36am
आदरणीय समर कबीर सर जी, इस रदीफ़ में बहुत से उम्दा अशआर दिये हैं आपने. एक से बढ़कर एक. हार्दिक बधाइयाँ आपको आदरणीय. सादर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 7, 2015 at 11:54pm
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , बधाई , सादर।
Comment by Samar kabeer on September 7, 2015 at 11:17pm
जनाब मनोज जी,मिथिलेश जी,दिनेश जी,सौरभ जी,गिरिराज जी,रवि जी,राहुल जी ,आप सब से अनुरोध है कि मेरी ग़ज़ल पुनः पढ़ें,आप सब की सुख़न नवाज़ी का दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 3:00pm
क्या बात सर । हर आम आदमी के मन की बात कह दी।वाह वाह वाह
Comment by Ravi Shukla on September 7, 2015 at 3:00pm

आदरणीय समर कबीर साहब । अादाब  बहुत ही उम्‍दा अशआर हुए है । आपकी ग़ज़ल पढ़ कर उन लोगो की बेबसी और मजबूरियों को भी जुबां मिल गई जो कुछ कह नहीं पाये ।अदबी लिहाज से ग़ज़ल के लिये दिली दाद  पेश करके हमें खुशी होगी और शेर शेर दिली दाद हाजिर भी है ले‍‍किन इस ग़ज़ल को पढ कर एक पीड़ा का अहसास भी हो रहा है उसको अभिव्‍यक्‍त करने लिये हमारे पास शब्‍द नहीं है । आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 11:08pm

नहीं आदरणीय समर साहब, ग़ज़ल को डिलीट कत्तई न करें. ये ग़ज़ल दिल की गहराइयों के नितांत अपने-से हुबाबों को शब्द देती हुई-सी है. ऐसी प्रस्तुतियाँ सहज ही नहीं हो जातीं. 

अलबत्ता, उन अश’आर को आप सँवार दें. आप स्वयं सक्षम हैं. 

इस ग़ज़ल पर पुनः दिल से दाद कह रहा हूं. 

सादर

Comment by Samar kabeer on September 6, 2015 at 10:12pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया है,ये ग़ज़ल मात्र 15 मिनिट में कही ,और फ़ौरन ही पोस्ट कर दी ,झल्लाहट,परेशानियाँ,अपनी माज़ूरी का अहसास शिद्दत से हुवा और इस पर विचार भी नहीं कर सका ,इस वक़्त दिल यह चाह रहा है कि इस ग़ज़ल को ही डिलीट कर दूँ,ध्यान दिलाने के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:13pm

आदरणीय समर भाई , हमेशा की तरह बहुत सुनदर ग़ज़ल कही है  आपने , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 4:28pm

आदरणीय समर कबीर साहब, थक गया मैं जैसे रदीफ़ को लेकर ऊब, झल्लाहट और ज़ाती सचबयानी को खूब स्वर मिले हैं. हार्दिक बधाइयाँ. 

आपने निम्नलिखित शेरों में ’न’ का प्रयोग किया है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन्हें और ढंग से निभाना था.

मेरे घर में पाँव रखा न ख़ुशियों ने
बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं

उपर्युक्त शेर में बलात ’ना’ का उच्चारण हो रहा है,

इस शेर में ’न’ साँचे से बाहर प्रतीत हो रहा है.

मेरे दरवाज़े पर दस्तक कोई न दे

तख़्ती पर ये लिख दो भाई थक गया मैं 

या यह मेरी समझ का दोष है ? बताइयेगा.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service