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क्या काफिया,रदीफ़ क्या,अशआर उसके आगे,
क्या शेर,क्या मक्ता,गज़ल बेकार उसके आगे l

क्या आसमान,जुगनू,क्या चांद,क्या सितारे,
मुमकिन भला है किसका दीदार उसके आगे l

क्या गुल,कि क्या गुलिस्तां,कि क्या भला शबनम,
पतझड़ लगी है मुझको बहार उसके आगे l

ये तो अच्छा है कि वो पर्दे में रहती है,
वरना चांद भी हो जाये शर्मशार उसके आगे l

जब भीनिगाहें शोख ले गुजरी वो गलियों से,
सारा मुहल्ला पड़ गया बीमार उसके आगे l

हम भी इसी हालात के मारे हुए हैं दोस्तों,
दिल रहा है हरदफ़ा लाचार उसके आगे l

वो हकीम मुझपे आखिर क्यूं तरस खाता नहीं,
जबकि रहा हूं उम्र भर बीमार उसके आगे l

उसको हाल-ए-दिल सुनाना चाहता हूं "सागर",
पर सोचता हूं कैसे हो इजहार उसके आगे ll

मौलिक एवं अप्रकाशित l
-इंजी.आनन्द सागर पान्डेय

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Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 6:25am
सादर आभार आदरणीय प्रतिभा जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 6:24am
सादर आभार आदरणीय त्रिपाठी जी l
Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 11, 2015 at 6:21am
आदरनीय मिथिलेश जी! सुझाव पर अमल का प्रयास करूंगाl
सादर धन्यवाद l
Comment by Manan Kumar singh on August 10, 2015 at 8:07pm
भाव भरा अहसास है,
खूब वाणी विलास है! सुन्दर गजल पर बधाई आदरणीय।
Comment by मनोज अहसास on August 10, 2015 at 7:31pm
बहुत खूब पाण्डेय जी
आपकी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत भावों से भरी है
मंच पर बहुत से गुणी ज्ञानी मौजूद है
उनसे इस्लाह लेने से आपमें निखार आएगा
हम भी सीख ही रहे है
सादर
Comment by pratibha pande on August 10, 2015 at 6:53pm
ग़ज़ल की तकनीकि जानकारी में सिफर हूँ पर भाव ख़ूबसूरत हैं बधाई आपको
Comment by maharshi tripathi on August 10, 2015 at 6:46pm

अच्छी गजल हुई है ,भाई जी ,आ. मिथिलेश वामनकर सर की बातों पर गौर करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 2:43pm

आदरणीय इंजी.आनन्द सागर पान्डेय जी,

विनम्र निवेदन है कि ग़ज़ल की बह्र लिख देंगे तो पाठकों को ग़ज़ल का लुत्फ़ लेना सहज हो जाएगा और प्रतिक्रिया भी दे सकेंगे. साथ ही मंच की परिपाटी रही है कि ग़ज़ल की बह्र या वज्न अवश्य लिखा जाता है जिसे अनुशासन की सीमा तक महत्त्व दिया जाता है.  सादर 

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