For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब (इस्लाही गजल )

2212 2212 2212 22

बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |

मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |

मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 

बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |

ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |


हर्ष महाजन  

"मौलिक व् अप्रकाशित"


नवाज = ईश्वर/भगवान् 
मंदिर = इंसानी देह  

Views: 1582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 11:23pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी इस दाद-ओ-तहसीन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2015 at 5:37pm

बहर की बहस अलग है पर गजल  बहुत भावपूर्ण है .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 2:45am

सही कहा राहुल भाई, काफिया के कारण मिसरा-ए-सानी बेबह्र हो जाएगा. चलिए कल पुनः विचार करते है 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 10:58pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ये मिसरे दोनो शे'रों के पहले मिसरे है। आपने जो बहर बताई उसके हिसाब से पहले मिसरे ही ठीक बैठते है।सानी मिसरे बेबहर हो जाते है।अगर समर साहबे का इशारा बहर पर होता तो वे ये दो मिसरे ही क्यूंउठातेे ।
Comment by Harash Mahajan on July 31, 2015 at 10:27pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया ....
सर अगर बह्र  अगर ये हुई {221 2121 1221 212) हुई तो पूरा नक्शा ही बदल जाएगा | ये अनमोल स्नेह बनाये रखियेगा |
साभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 31, 2015 at 9:24pm

बाकी लाइव आयोजन रात बारह बजे समाप्त होगा फिर विस्तार से बात करते है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 31, 2015 at 9:23pm

"मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी मगर"
 "हर एक दिल प हो गई क़ाबिज़ ये दुश्मनी"

इन दो मिसरों को समर कबीर साहब के हिसाब से करने पर और यथास्थान मात्रायें गिराकर पढ़े राहुल भाई ...समझ आ जाएगी बात. आज मैं नेट की समस्या के चलते लाइव आयोजन से दूर रहा हूँ इसलिए वहां जा रहा हूँ बाकी बातें कल .... सादर 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 9:14pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रणाम ।
सर अगर बहर जो आपने बताई वह है तो फिर तो लगभग पुरी गजल बेबहर हो जाती है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 31, 2015 at 8:59pm
आदरणीय हर्ष भाई जी समर कबीर साहब सही कह रहे है। दरअसल आपने जो बह्र लिखी है वो एक प्रसिद्ध बह्र से मिलती जुलती है इसलिए आपकी ग़ज़ल की लय उसी बह्र के हिसाब से हो गई है
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12

इस बह्र में आपकी ग़ज़ल फिट बैठती है उसी अनुसार समर साहब ने इस्लाह दी है। विस्तार से कल बात करते है। सादर।
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 7:47pm
आदरणीय हर्ष महाजन जी मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है आदरणीय समर साहब जी जल्दबाजी में शायद बहर के आखिर मे १२ मान बैठे है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service