2212 2212 2212 22
बजता हूँ बन के साज तेरे मंदिरों में अब,
 देता तुझे आवाज  तेरे मंदिरों में अब |
 
 मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी लेकिन, 
 क्यों इस तरह  मुहताज तेरे मंदिरों में अब |
 
 मन जिसका देखूं दुश्मनी की नीव पे काबिज़, 
 कैसे करूँ परवाज़ तेरे मंदिरों में अब | 
 
 बस रौशनी की खोज में भटका तमाम उम्र
 पगला गया, नेवाज तेरे मंदिरों में अब |
 
 ले चल मुझे शमशान, कोई गम जहाँ ना हो, 
 मेरा गया हमराज, तेरे मंदिरों में अब |
 
 
 हर्ष महाजन  
"मौलिक व् अप्रकाशित"
 
 
 नवाज = ईश्वर/भगवान्  
 मंदिर = इंसानी देह  
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी इस दाद-ओ-तहसीन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया !!
बहर की बहस अलग है पर गजल बहुत भावपूर्ण है .
सही कहा राहुल भाई, काफिया के कारण मिसरा-ए-सानी बेबह्र हो जाएगा. चलिए कल पुनः विचार करते है
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया ....
सर अगर बह्र  अगर ये हुई {221 2121 1221 212) हुई तो पूरा नक्शा ही बदल जाएगा | ये अनमोल स्नेह बनाये रखियेगा |
साभार !!
बाकी लाइव आयोजन रात बारह बजे समाप्त होगा फिर विस्तार से बात करते है.
"मांगी थी मैंने उम्र की संजीदगी मगर"
 "हर एक दिल प हो गई क़ाबिज़ ये दुश्मनी"
इन दो मिसरों को समर कबीर साहब के हिसाब से करने पर और यथास्थान मात्रायें गिराकर पढ़े राहुल भाई ...समझ आ जाएगी बात. आज मैं नेट की समस्या के चलते लाइव आयोजन से दूर रहा हूँ इसलिए वहां जा रहा हूँ बाकी बातें कल .... सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online