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डूबा था पर बाहर आया....

‌‌‌अपनी जान बचा तो पाया,
डूबा था पर बाहर आया।

जब इल्ज़ामों की बारिश थी,
पास नहीं था मेरे साया।

मुझको गैर बताकर उसने,
हाय गजब ये कैसा ढाया।

तन्हाई में खाली दिल ने,
साज़ उठाया नग़मा गाया।

जबसे सच्चाई जानी है,
हर रिश्ते से दिल घबराया।

प्यार भरा दिल तोड़ा जिसने,
मानो उसने मंदिर ढाया।

कुछ मिसरे ये टूटे फूटे,
हैं मेरा सारा सरमाया।

हम 'इमरान' मुहब्बत करके,
कर बैठे हैं जीवन ज़ाया।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:40pm

जनाब समर कबीर साहब, आपने अपने इस्लाही कमेंट से नवाज़ा मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ. 'जाया' के बारे अपने जो जानकारी दी उसका इल्म अभी तक मुझे नहीं था.... आखिरी शेर को इस तरह कर रहा हूँ.... 'हमने यार मुहब्बत करके, जीवन को बेकार बनाया'....

नज़रे सानी कीजियेगा...

Comment by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:37pm

गिरिराज जी आपको ग़ज़ल पसंद आई शुक्रगुज़ार हूँ में आपका

Comment by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:36pm

आपका शुक्रिया जनाब मिथलेश साहब 

Comment by इमरान खान on August 6, 2015 at 4:36pm

बहुत बहुत शुक्रिया शिज्जू साहब 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:06pm

बेहतरीन जनाब इमरान साहब हर शेर के लिये दाद हाज़िर है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:27pm

छोटी बहर की इस शानदार  गज़ल के लिए शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं आदरणीय इमरान जी .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 12:53pm

आदरणीय इमरान भाई , छोटी बहर मे क्य खूब गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ॥

Comment by Samar kabeer on July 27, 2015 at 11:16am
जनाब इमरान ख़ान जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"कर बैठे हैं जीवन ज़ाया"

इस मिसरे में जो आपने क़ाफ़िया लिया है "ज़ाया" वो सही नहीं है,इस क़ाफ़िये के संभंद में बहना राजेश कुमारी जी की ग़ज़ल "हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर" पर विस्तृत चर्चा कर चुका हूँ,कृपया उनकी ग़ज़ल और उसकी टिप्पणियाँ एक बार पढ़ लें।

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