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ग़ज़ल -- ख़ुदा हो जा, अगर क़ुव्वत है तुझ में (गिरिराज भंडारी )

1222   1222    122

बहारों पर् चलो चरचा करेंगे

ख़िजाँ का ग़म ज़रा हलका करेंगे

 

कभी सोचा नहीं, हम क्या बतायें

न होंगे ख़्वाब तो हम क्या करेंगे

 

सजा दे , हक़ तेरा है हर खता की

उमीदें रख न हम तौबा करेंगे

 

अगर जुगनू सभी मिल जायें, इक दिन

यही सर चाँद का नीचा करेंगे

 

सँभल जा ! हम इरादों के हैं पक्के

कि, मर के भी तेरा पीछा करेंगे

 

जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये

सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे    ...... इब्ने सुब्ह  = सूरज

 

सभी ख़ुद आश्ना रोते मिलें, कल  

अगर आईने काम अपना करेंगे

 

निहारे जा रहा हूँ आसमाँ को

करम फर्मा इशारा क्या करेंगे

 

हँसी ले जाओ सारी मुफ्त में तुम

हम अश्क़ों का न फिर सौदा करेंगे

 

सुखा तू , उस तरफ से जितना दम है

पसीना इस तरफ़ सींचा करेंगे

 

बहुत तारीकियाँ हैं , गर जलें हम

किसी आंगन को तो उजला करेंगे

 

ख़ुदा हो जा,  अगर क़ुव्वत है तुझ में

अगर तू हो गया , सज़दा करेंगे 

******************************

गिरिराज भंडारी

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 13, 2015 at 9:00pm

ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल कीजिए


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Comment by rajesh kumari on July 13, 2015 at 7:06pm

आ० गिरिराज जी,शेर आपने समझाया तो अब समझ गई हूँ पहले मेरी अल्पमति में नहीं घुसा था इस लिए लिख दिया माफ़ कीजिये

रही बात दो जगह अलिफ़ वस्ल एक दम दुरुस्त है इस लिए उसकी और इंगित करने की हिमाक़त कैसे कौन कर सकता है आपने आईने की ने को आपने लघु किया है बस इस पर संशय हुआ था कामपना सही है उस और  कोई  बात नहीं थी गायन में अगर आइन पढ़ रही थी तो थोडा अटकाव होने के कारण लिखा था यदि ने की मात्रा गिरना यहाँ उचित है तो माफ़ी मांगती हूँ तथा अपनी प्रतिक्रिया वापस लेती हूँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2015 at 6:35pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , शुक्रिया , बात समझ पने के लिये । अदर अस्ल और पीचे जाकर कहूँ  तो , जो ब्रमाण्ड मे है वही पिंड मे है  , इसका मतलब हमारे अन्दर भी तामाम ग्रह नक्षत्र हैं तो सूर्य भी एक हमारे अन्दर है , जब अन्दर का सूर्य जागेगा तो हम आकाश के सूरय  की चमक कोभी नीचा दिखा सकते हैं । मै ये कहना चाहता हूँ / था  । आपने अलिफ वस्ल सही पहचाना । मुझे आश्चर्य ये हुआ कि जो दो जगहों पर अलिफ वस्ल देख सक रहा है वओ तीसरी जगह कैसे चूक गया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 13, 2015 at 6:23pm

आदरणीय गिरिराज सर,  इब्ने सुब्ह वाला मिसरा मुझे भी समझ नहीं आया था, आपकी प्रतिक्रिया के बाद अब समझ थोड़ा थोड़ा आया है, पर पूर्णतः संतुष्ट हूँ ये नहीं कह सकता. खैर ये मेरी व्यक्तिगत नासमझी है.

 और  //अगर आईने काम अपना करेंगे// में अलिफ़-वस्ल अगर आईने में खोजा जो नहीं था काफिया के साथ अलिफ़ वस्ल है इस पर ध्यान ही नहीं गया. संभवतः इसलिए लय भंग हो रही थी. आपकी टीप के बाद भी बहुत देर तक मिसरा बेबह्र ही लगता रहा लेकिन अब समझ आया तो प्रतिक्रिया दे रहा हूँ. दरअसल आईने में 'ने' की मात्रा गिराना और काफिया के साथ 'काम' का अलिफ़ वस्ल संभवतः एक साथ होने से लय भी भंग हुई और मेरे समझने में त्रुटी भी हुई. क्षमा चाहता हूँ.  अब मिसरे को कुछ यूं पढ़ रहा हूँ - //अगर आई /ने कामपना/ करेंगे// 

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2015 at 5:38pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका बहुत बहुत आभार  आभार ।

// बाकी आदरणीय राजेश दीदी की से सहमत हूँ। सादर। //

आदरणीया राजेश जी को दिया ही जवाब यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ  ---

फिर तो  -- सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे   , मिसरा भी बेहबर है ?

और इस मिसरे के विषय मे क्या कःअयाल है आपका   ---  हम अश्क़ों का न फिर सौदा करेंगे

 अगर ये दोनो बेहबहर नहीं लिखा आपने तो  आपको समझ जाना चाहिये था  ।

जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये

सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे    ...... इब्ने सुब्ह  = सूरज--//-माफ़ कीजिये ये शेर  समझ नहीं आया //  

मुझे इसमे न समझने वाली कोई बात नही लगती , शे र पसंद न हो तो बात अलग    फिर भी  -- 

मै  ये कहना चाहता हूँ कि , अपने अन्दर की रोशनी  ( आत्म प्रकाश ) अगर बाहर आये  जो कि हर किसी के अन्दर है , तो हम इतने प्रक्स्शित हो सकते हैं कि सूरज को भी नीचा करे दें ( प्रकाश मे , चमक में )

व्यक्तिगत तौर पर मै अपने शे र से संतुष्ट हूँ । बाक़ी जिसकी जैसी समझ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2015 at 5:35pm

आदरणीया राजेश जी . गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ।

// अगर आईने काम अपना करेंगे--इसकी बह्र एक बार जांच लें// 

फिर तो  -- सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे   , मिसरा भी बेहबर है ?

और इस मिसरे के विषय मे क्या कःअयाल है आपका   ---  हम अश्क़ों का न फिर सौदा करेंगे

 अगर ये दोनो बेहबहर नहीं लिखा आपने तो  आपको समझ जाना चाहिये था  ।

जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये

सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे    ...... इब्ने सुब्ह  = सूरज--//-माफ़ कीजिये ये शेर  समझ नहीं आया //  

मुझे इसमे न समझने वाली कोई बात नही लगती , शे र पसंद न हो तो बात अलग    फिर भी  -- 

मै  ये कहना चाहता हूँ कि , अपने अन्दर की रोशनी  ( आत्म प्रकाश ) अगर बाहर आये  जो कि हर किसी के अन्दर है , तो हम इतने प्रक्स्शित हो सकते हैं कि सूरज को भी नीचा करे दें ( प्रकाश मे , चमक में )

व्यक्तिगत तौर पर मै अपने शे र से संतुष्ट हूँ । बाक़ी जिसकी जैसी समझ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 13, 2015 at 4:57pm
आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं। बाकी आदरणीय राजेश दीदी की से सहमत हूँ। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2015 at 1:55pm

बहारों पर् चलो चरचा करेंगे

ख़िजाँ का ग़म ज़रा हलका करेंगे---सुन्दर मतला 

 

सँभल जा ! हम इरादों के हैं पक्के

कि, मर के भी तेरा पीछा करेंगे------हाहाहा वाह्ह  बहुत खूब 

जिया अन्दर का बाहर आ तो जाये

सर इब्ने सुब्ह को नीचा करेंगे    ...... इब्ने सुब्ह  = सूरज---माफ़ कीजिये ये शेर  समझ नहीं आया 

अगर आईने काम अपना करेंगे--इसकी बह्र एक बार जांच लें 

 

हँसी ले जाओ सारी मुफ्त में तुम

हम अश्क़ों का न फिर सौदा करेंगे---बढ़िया 

अंतिम शेर भी उम्दा है बहुत बहुत बधाई आ० गिरिराज जी 

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० 

 

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