For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिता की अचानक हुई मौत से वो टूट गया । एकदम ठीक ठाक थे , बस हल्का सा बुखार हुआ और दो दिन में चल बसे । आर्थिक स्थिति तो बदतर थी ही ,पहले माँ और अब पिताजी भी , एकदम से बड़ा हो गया वो । पुरे गाँव में ख़बर हो गयी थी और सब रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया । चाचा , जो अलग रहते थे घर पर आ गए थे और अंतिम क्रिया की तैयारियों में लग गए थे ।
अंतिम संस्कार करके वापस चलते समय मौजूद सभी लोगों को रिवाज़ के अनुसार भरपेट नाश्ता कराकर वो भी चाचा के साथ ट्रैक्टर पर गाँव चल पड़ा । घर पहुँच कर चाचा ने उसको सारे खर्च का हिसाब दिया तो वो सर पकड़ कर बैठ गया । अभी तो अगले तेरह दिन तमाम कर्मकांड होने थे और उसके बाद ब्राह्मणभोज जिसमें पूरा गाँव और रिश्तेदारों को खिलाना था ।
शायद इन कर्मकाण्डों में उसके सर से माँ , बाप के बाद खेतों का साया भी उठ जाये, अब वो पूरी तरह से अनाथ हो गया था ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 810

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 3:05pm

बहुत बढ़िया आ० विनय सर! सादर बधाई

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 5, 2015 at 12:41pm

वाकई पूरी तरह अनाथ हो गया था, बहुत सुन्दर। साधुवाद।

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी, समय के साथ बदलाव जरुरी है ..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:17pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी ..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:15pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन सेठी इंतज़ार जी..

Comment by विनय कुमार on July 5, 2015 at 12:15pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया शशि बंसल जी , पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा इसके लिए.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 5, 2015 at 9:20am
आदरणीय विनयजी सुन्दर कथा। सदियो से चली आ रही ये प्रथा समय के साथ एक कुप्रथा ही बन कर रहगयी है जो ना जाने कितने परिवारो को गरीबी और कर्जो के चंगुल में फंसा लेती है।
इस बेहतरीन कथा के लिये सादर बधाई स्वीकार करे।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 11:01pm
आदरणीय विनय जी बहुत बढ़िया लघुकथा।
दिखावे की प्रथा बंद होनी ही चाहिए।
बधाई।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 10:39pm

इस प्लाट पर पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है, हालाकि अब समय बदला है और यदि दिखावा को छोड़ दें तो ये कर्मकांड अपने हैसियत के अनुसार किये जा सकते हैं. पुनः इस विषय को लेकर आने हेतु बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service