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ग़ज़ल : हमारा प्यार आँखों से अयाँ हो जायगा एक दिन

हमारा  प्यार आँखों से अयाँ हो जाएगा इक  दिन 

छुपाना लाख चाहोगे बयाँ हो जाएगा इक दिन 

ये सब वहशत-ज़दा रातें इसी उम्मीद में गुज़रीं 

कि तुम आओगे , रौशन ये  समां हो जाएगा इक दिन 

न टूटे दिल  , न तन्हा रात , न भीगी  हुई पलकें 

मगर सब छीन कर बचपन,जवां हो जाएगा इक दिन 

तुम्हारे सुर्ख होठों की महक में ऐसा जादू है 

कि भवरों को भी फूलों का गुमाँ हो जाएगा इक दिन 

लिखो बस  गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के गाओ 

 हमारा मुल्क  सपनों का जहाँ हो जाएगा इक दिन 

''मौलिक एवं अप्रकाशित'' 

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Comment by वीनस केसरी on July 5, 2015 at 2:01am

सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें

प्राप्त सुझाव पर गौर फरमाएं तो दोष दूर हो जायेगा
एक सुझाव यह भी है कि, और को १ मात्रा अनुसार नहीं बाँधा जा सकता है

Comment by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 9:18pm

लिखो बस  गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के गाओ 

 हमारा मुल्क  सपनों का जहाँ हो जाएगा इक दिन ...लाजबाव..क्या कहने हैं...

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 5:18pm

लिखो बस  गीत उल्फ़त के और नग्मे प्यार के गाओ 

 हमारा मुल्क  सपनों का जहाँ हो जाएगा इक दिन ,,,बहुत सुन्दर |

Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 9:19am
न टूटे दिल , न तन्हा रात , न भीगी हुई पलकें
मगर सब छीन कर बचपन,जवां हो जाएगा इक दिन

बहुत उम्दा
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 8:09am
आदरणीय बहुत सुन्दर गजल हुई है । आदरणीय मिथिलेश जी से मैं सहमत हूं आप भी गौर करना।

न टूटे दिल , न तन्हा रात , न भीगी हुई पलकें। यह मिसरा बेबहर है पुन: देखे अगर आपने न को ना पढा है तो गजल में ना शब्द मान्य नहीं है । जैसा कि मैंनें गुनीजनों से सुना है। सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on July 1, 2015 at 5:03pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Sushil Sarna on July 1, 2015 at 3:32pm

न टूटे दिल , न तन्हा रात , न भीगी हुई पलकें
मगर सब छीन कर बचपन,जवां हो जाएगा एक दिन

वाह बहुत खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने प्रस्तुत ग़ज़ल में … हार्दिक बधाई आदरणीय saalim sheikh  जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 1, 2015 at 2:22pm

आदरणीय सलीम भाई जी,

बह्र-ए-हजज़ में बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

ग़ज़ल की रदीफ़ 'हो जाएगा एक दिन' में एक को इक किया जाए तो मिसरा बेबह्र नहीं होगा. यद्यपि उर्दू में संभवतः छोटी ए बड़ी ए होने के कारण आपने ऐसा किया हो किन्तु देवनागरी में ग़ज़ल पढ़ते हुए मिसरा थोड़ा बेबह्र लग रहा है. 

एक निवेदन है कृपया ग़ज़ल में बह्र का वज्न अवश्य लिखें ताकि पाठक रचना का पूरा आनंद ले सके. 

सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2015 at 7:40am

बहुत बढ़िया . सादर .

कृपया ध्यान दे...

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