For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत्तगयन्द सवैया // सात भगण + दो गुरू

बालक बुद्धि यही समझे, अखबार सुधार किया करते हैं।
जूठन खीर न दूध गिरे, इस हेतु बिछा भुइ को ढकते है।।
आखर-आखर कालिख ही, मन सोच-विचार भली कहते हैं।
मानव नित्य प्रलाप करे, अखबार प्रशासन ही छलते हैं।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 396

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 30, 2015 at 11:07pm

आ0 भंडारी भाई जी,   छंद पर आपकी उपस्थिति के  लिये आपका  हार्दिक आभार.  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2015 at 1:57pm

आदरणीय केवल भाई , इस छंद को सस्वर पाठ कर बहुत आनंद आया । बाक़ी बातें तो मै नहीं जानता , आदरणीय सौरभ भाई जी के कहे का ध्यान दीजियेगा ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2015 at 10:20am

आ0 सौरभ सर जी,  आपकी बात सोलहोंआने सही है. किसी भी छंद रचना के उपरांत उसका पुनरावलोकन करना अतिआवश्यक होता है, जिस्की चूक हुइ हैं. आपका आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2015 at 10:54pm

मत्तगयंद सवैया की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई केवल प्रसादजी. शिल्प के स्तर पर सारे पद (पंक्तियाँ) सधे हुए हैं. किन्तु, भाई इन पदों में संप्रेषणीयता का वह स्तर नहीं है कि जो एक छान्दसिक रचना से अपेक्षित होता है.

सात भगण+दो गुरु के वर्ण पर संयोजित हुए शब्द यदि तार्किक ढंग से भाव अभिव्यक्त न करें तो छन्द का उद्येश्य प्रभावित होता है. आपने बहुत कुछ कहने का प्रयास किया है लेकिन उस कहे को रुक कर यह देखना आवश्यक था न, कि क्या प्रस्तुति आपके विन्दुओं को व्यवस्थित ढंग से रख पा रही है.

छन्द के प्रति लोगों (पाठकों) का एक तो वैसे ही दुराव बनता जा रहा है. यदि ऐसे एक या दो छन्द बिना पूरी आश्वस्ति के प्रस्तुत होने लगे, तो दवाब छान्दसिक रचनाओं पर ही बनेगा. आप एक अच्छे छन्द-रचनाकार हैं. आपकी प्रस्तुतियों से अपेक्षाएँ यदि हैं तो यह आपके रचनाकर्म के प्रति सम्मान के भाव ही हैं.
विश्वास है आप मेरी बातें समझ रहे हैं.
शुभेच्छाएँ.
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
17 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service