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उनके बाहों की सौग़ात मिली

उनके बाहों की सौग़ात मिली
इक मुद्दत पे ऐसी रात मिली

जाने मेरे हक़ का था वो पल
या मुझको कोई खैरात मिली

रिमझिम रिमझिम मेरी आँखों से
उसकी याद लिए बरसात मिली

सोचा क्या था क्या पाया मैंने
टूटे सपनों की बारात मिली

जिनको सज़दे में माँगा ता-उम्र
उनसे कुछ पल कि मुलाक़ात मिली

जब सोचा की अब जीतेंगे हम
बस उस पल ही मुझको मात मिली

© परी ऍम. 'श्लोक'

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Pari M Shlok on June 19, 2015 at 1:12pm
Sushil Sarna जी आपकी तारीफ़ का शुक्रिया बेहद
Comment by Sushil Sarna on June 19, 2015 at 12:40pm

उनके बाहों की सौग़ात मिली
इक मुद्दत पे ऐसी रात मिली

जाने मेरे हक़ का था वो पल
या मुझको कोई खैरात मिली

वाह क्या बात है … बहुत ही खूबसूरत अहसास उभर कर आये हैं आदरणीय। हार्दिक बधाई।

Comment by Pari M Shlok on June 19, 2015 at 11:02am
vinaya kumar singh जी आपकी तारीफ़ का शुक्रिया बेहद
Comment by Pari M Shlok on June 19, 2015 at 11:01am
Dr. Vijai Shanker जी आपका शुक्रिया सर
Comment by विनय कुमार on June 19, 2015 at 10:59am

// जिनको सज़दे में माँगा ता-उम्र
उनसे कुछ पल की मुलाक़ात मिली//, बहुत उम्दा पंक्तियाँ , बधाई इस रचना के लिए आदरणीय..

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2015 at 10:54am
सुन्दर, बधाई, आदरणीय सुश्री परी एम श्लोक , सादर।
Comment by Pari M Shlok on June 19, 2015 at 10:46am
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शुक्रिया आपका सर !
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 10:44am

मतला बहुत ही उम्दा है . आपको बधाई .

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