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मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ - परी ऍम. 'श्लोक'

आदमी क्या खूब कोशिश करते हैं
गम मिटाने के लिए...
ले कर जाम हाथों में अपने
रोज़ कहते हैं
कि वो टूटे हैं बिखरे हैं बेहाल बेहद हैं
रोज़ कहते हैं
करता हूँ नशा सबकुछ भूल जाने के लिए
फूंकता हूँ सिगरेट हर फ़िक्र धुंए में उड़ाने के लिए
सोचती हूँ कि
कितनी तरकीब हैं आदमी के पास
अपने आपको सुकून पहुँचाने के लिए
मगर
मेरे पास अपने दर्द में असीर रहने के सिवा
कोई राह राहत की नज़र नहीं आती
मैं ये शौक भी अता नहीं फरमा सकती
हाँ! मुझे अक्सर ये याद रहता है
कि मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ !!!

सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम.'श्लोक'

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 26, 2015 at 7:01pm

एक हिन्दुस्तानी औरत की सीमायें ... सुन्दर सुघड़ रचना! व्यंग्य, भी गर्व भी अभिनन्दन !


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Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 7:00pm

इस रचना की अंतिम पंक्ति ही इसका सार है जो रचना को उंचाइयां देती है ...बहुत सुन्दर वाह ...आपकी पहली रचना पढ़ी आगे भी लिखती रहिये |हार्दिक बधाई परी जी 

Comment by Pari M Shlok on February 26, 2015 at 9:53am
Dr. Vijai Shanker जी आपके निवेदन का सम्मान करती हूँ ..किन्तु मैंने नज़्म की विधा में लिखा है हिंदी का यह शब्द प्रयोग नही कर सकती ...उर्दू का कोई शब्द होता तो ज़रुरु बदल देते ...कृपया अन्यथा न लें व मार्गदर्शन करते रहे ..धन्यवाद
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 12:15am
हाँ! मुझे अक्सर ये याद रहता है
कि मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ !!!
व्यंग भी है, संस्कृति भी है, धरोहर भी है , गर्व भी है। आपकी इस छोटी सी पंक्ति में एक पूर्ण दृष्टि है ,जीवन शैली है , आपको इसके लिए बहुत बहुत बधाइयां आदरणीय परी एम श्लोक जी , सादर।
नोट - एक निवेदन है , यदि अक्सर को आप " प्रायः " या " सदैव " से विस्थापित करना चाहें तो संभतः इन पंक्तियों के भाव ( मूल्य भी ) और बढ़ जाएंगे।
Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 2:28pm
आपका आभार krishna mishra जी ... अच्छा लगा आपको भी OBO पर देख कर यहाँ बहुत ही उच्च कोटि के रचनाकार हैं इनके सहयोग से और बेहतर किया जा सकता है साहित्य में ...आपका स्वागत है !!
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 1:41pm

आपको पढ़ना हमेशा से ही सुकून देता है..obo से मै आपके माध्यम से ही परिचित हुआ हूँ..आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 25, 2015 at 12:18pm

लाजवाब रचना आदरणीय परी ऍम श्ल्लोक जी ........सच कहा आपने....

कितनी तरकीब हैं आदमी के पास
अपने आपको सुकून पहुँचाने के लिए
मगर.........

हाँ! मुझे अक्सर ये याद रहता है
कि मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ !!!.......

जहाँ आदमी अपने शौक के लिए कई बहाने तलाश कर लेता है वहां औरत मान मर्यादा के सम्मुख अक्सर अपने आप में ही घुटती रहती है !

Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 10:41am
khursheed khairadi जी व जितेन्द्र पस्टारिया जी आपकी टिप्पणी का स्वागत व हार्दिक आभार
Comment by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 10:35am

आदरणीया परी जी, सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 25, 2015 at 10:33am

बहुत सुंदर लिखा, आपने आदरणीय. बधाई

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