For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काम का आदमी ( लघुकथा )

" मंजू के यहाँ आज बडी़ वाली एल ई डी भी आ गई । पिछले ही महिने उसने गाड़ी भी ली थी । और एक आप है ...!!!"
" मै क्या ....? क्या कहना चाहती हो तुम ?"
वहीं पास के विडियो गेम में लगे बेटे ने भी कंधे को उचका कर पिता की ओर देख फिर अपने गेम में व्यस्त हो गया ।
" मै क्या कहूँगी भला आपसे .! आपकी ही आॅफिस का बाबू है वो ..और आप अधिकारी होकर भी किसी काम के नहीं ..! "
" किसी काम का नहीं मै ....? "- मन में रह - रह कर एक ही बात अब घुम रही थी कि वे क्या किसी काम के नहीं है सच में ..? कल आॅफिस की लाॅबी में भी ठेकेदार के मुंह से परोक्ष में सुना था कि ये किसी काम के नहीं !
अगले ही दिन आॅफिस में ठेकेदार की अपूर्ण फाईल को पूर्ण करने के प्रयास में वे जी जान से लग गये थे ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 9:53pm
सही कहा आपने कि समसमायिक विषयों पर सतत लेखन होना ही चाहिए । आभार आपको कथा पर मेरा हौसला बढाने के लिये आदरणीय केवल प्रसाद जी
Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 9:49pm
कथा पर टिप्पणी देकर मुझे अनुग्रहित करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया डा. नीरज शर्मा जी ॥
Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 9:44pm
आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , सच कहा आपने कि बहती धारा में बहना आसान है । इमानदारी आज मजाक बन कर रह गई है । नैतिक मूल्यों का ह्यास बडी तेजी से होता जा रहा है । परिवार का खाका अब सीरियल के हिसाब से तय किए जाते है । साड़ी कपड़े सब डिजायनर ..... वेल फर्निस्ड घर .शिक्षा में आये व्यावसायिकता ....दिखावे का बडा आडम्बर । क्या करें सब घालमेल संस्कृति और संस्कार का हो रहा है । अति महत्वाकांक्षा ने सब बिगाड़ कर रख दिया है । बाजारीकरण ने तो जन जन को लपेटे में ले लिए है । कोई विकल्प नहीं दिखाई देता है । जैसे सब दम तोड़ रहे हो ... संस्कृति की ह्यास को रोकने हेतु एक बडे प्रयास की जरूरत तो है । जागरूकता का आवाहन ही एक मात्र उपाय दिखाई देता है । आभार
Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 9:22pm
आभार आपको आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by kanta roy on June 18, 2015 at 9:21pm
आभार आपको दिल से आदरणीय डा. विजय शंकर जी कथा पर नजर करने के लिए । आप सब सुधी जनों के बीच बडी अपरिपक्व सी पाती हूँ स्वंय को । आपका यह हौसला वर्धन मेरे आने वाली कथा के लिए हितकारी सिद्ध होगा ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा है । आपसे सदा मार्गदर्शन की आशा रहेगी । नमन
Comment by maharshi tripathi on June 18, 2015 at 7:44pm

आज की परिस्थित में ईमानदारी है ही कहाँ ,,जो व्यक्ति  इसके नियमों पर चलते हैं आज का समाज उन्हें जीने नही देता,,,,और बेईमानी का तो बोलबाला है ,,,आपको हार्दिक बधाई आ. kanta roy जी |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 9:07pm

दुनिया में कम ही लोग ऐसे होंगे जो अपनी मनमर्जी से २ नम्बरी कमी करना चाहते है पर उनकी अपने  ही परिवार व् समाज में झूठी प्रतिष्ठा  का प्रश्न ही उन्हें ऐसा करने पर विवश करता  है! बहुत ही सार्थक विषय पर लघुकथा हुयी है!हार्दिक बधाई आदरणीया!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 7:16pm

समसामयिक विषयो पर लेखनी तो चलती ही रहनी चाहिये. इस सुंदर प्रस्तुति के लिये हार्दिक बधाई.  आ0 कांता जी, सादर

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on June 17, 2015 at 7:01pm

विषय बहुत सार्थक  है, प्रस्तुति भी ठीक है। वाकई इस दल दल में घुस कर निकलना बहुत ही दुरूह कार्य है, वैसे भी लालच का कभी अंत नहीं हो सकता। एक ईमानदार व्यक्ति को भी अपनों के ताने बेईमान बनने के लिए मजबूर कर देते हैं। आज के परिपेक्ष्य में देखें तो विरले ही ईमानदार मिलेंगे। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 17, 2015 at 5:41pm

बहती धारा में शामिल होना आसांन  है   .मैं अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ की आज  ईमानदारी को प्रोत्साहित करने वाला कोई नहीं है , न माँ, न बाप, न पत्नी और न बच्चे और समाज के कंटक तो  आप है ही .  मुझे याद है मेरे पिता मुझे मेरी प्रथम नियुक्ति  पर पौड़ी गढ़वाल छोड़ने गए थे , मैं  उन्नीस वर्ष का था. वहां से विदा होते समय उन्होंने कुछ बातें कही थी उनमें  से एक यह बात थी कि   मैंने कभी नं  2 की कमाई नहीं की पर  यह मैं यहाँ तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ  मगर बेटा यह याद रखना की इस  व्यवहार में रिटेक नहीं होता अर्थात आज ले लेते है आगे फिर नहीं लेंगे .एक बार का फिसलना हमेशा के लिए फिसलना है I  मैंने उनका बचन कितना निभाया यह मेरे साथ जिन्होंने काम किया है वे ही जानते हैं और इस सार्वजानिक मंच पर मुझे इसे बताने में इसीलिये कोई संकोच नहीं है  i इस  कहानी का कमजोर चरित्र मुझे प्रभावित  नहीं करता परन्तु  धारा के विपरीत कितने चल पाते हैं . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service