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ग़ज़ल - फिल बदीह --- फिर उसी रह गुज़र गया कोई ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212   22  / 112

  

"क्या ज़माने से डर गया कोई
एह्द क्यूँ तोड़ कर गया कोई"

ख़्वाब मेरे कुतर गया कोई

फिर नज़र से उतर गया कोई

 

दावा पत्थर का था , मगर गिर के

शीशे जैसे बिखर गया कोई

 

तेरे वादे पे ऐतबार किया

यानी बे मौत मर गया कोई

 

बाइसे बे वफाई जान तो ले     -- कारण 

क्यों वफा से मुकर गया कोई

 

एक इनकार तेरी सुन कर ही

देख कितना बिखर गया कोई

 

तेरे अल्फाज़ थे या जादू था

सुन के कितना सँवर गया कोई

 

है जहाँ फानी , तू पलक झपका

और याँ से ग़ुज़र गया कोई

 

इस तरफ है कुआँ , उधर खाई

फिर उसी रह गुज़र गया कोई

 

वक़्त की मार जब पड़ी यारों

देखो कितना सुधर गया कोई"

 

कुछ तो लूटा ही होगा शहरों ने

"गाँव क्यूँ लौट कर गया कोई" ?

*************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 1:25pm

आदरणीय नरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2015 at 11:19am

आ० अनुज

बहुत बेहतरीन . मजा आया . सादर .

Comment by narendrasinh chauhan on June 11, 2015 at 10:52am

वक़्त की मार जब पड़ी यारों

यूँ ही कितना सुधर गया कोई

कुछ तो लूटा ही होगा शहरों ने

लौट क्यूँ गाँव-घर गया कोई ?  लाजवाब खूब सही फरमाया

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