For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन/फ़ाइलान


मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं
हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं

दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर
किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं

उर्यानियत के खेल इन्हें भी पसंद हैं
ख़ामोश हैं ये एहल-ए-नज़र देखते नहीं

वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कल
ये और बात है कि इधर देखते नहीं

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं

कुछ देर और सब्र का दामन न छोड़ना
वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं

हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास है
पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 885

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:21pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,आपके फूल सर आँखों पर,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:18pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:17pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:15pm
आली जनाब डॉ विजय शंकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:12pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 9, 2015 at 11:08pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 9, 2015 at 3:11pm

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं

कुछ देर और सब्र का दामन न छोड़ना
वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं    -     काम्ल का शे र निकाला है आपने , क्या बात है !! दिली मुबारक बाद हाज़िर है , कुबूल कीजियेगा ।

Comment by kanta roy on June 9, 2015 at 12:35pm
हर दिल पर हो रहा है असर देखते नहीं ..... वाह !!! क्या शेर कहीं है आपने .... इस शानदार गजल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय समीर कबीर जी
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 9, 2015 at 7:37am

आदरणीय Samar kabeer जी उम्दा शेरों के लिये बधाई ....सादर 

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं

Comment by विनय कुमार on June 8, 2015 at 8:49pm

// वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं // , बहुत सुन्दर , बधाई क़ुबूल करें आदरणीय.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service