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गुरुमंत्र ( लघुकथा )

" डॉक्टर साहब , बच्चा बच तो जायेगा न ", उसके दोनों हाँथ जुड़े थे ।
" देखो हम लोग पूरी कोशिश करेंगे , आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी । बस पैसों का इंतज़ाम कर लेना "।
सुबह जूनियर डॉक्टर ने फोन किया " सर , स्पेशलिस्ट का फोन आया था कि वो नहीं आ पाएंगे | इसको डिस्चार्ज कर देते हैं , कहीं और करवा लेगा ऑपरेशन "।
" क्यों , ऑपरेशन क्या असफ़ल नहीं होते ", डॉक्टर साहब ने समझाया । ऑपरेशन की तैयारियाँ होने लगीं ।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on June 6, 2015 at 6:16pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , ये एक स्याह पक्ष है इस पेशे का ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2015 at 2:31pm

यही हो रहा है आदरणीय , पैसे की खातिर जान दाँव पर लग रही है मरीजों की । बहुत सुन्दर ! हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 11:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी .

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 8:12pm

"देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर ",इस लघुकथा पर आपको बधाई आ. vinaya kumar singh जी |

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 8:04pm

चिकित्सा अब एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है और जिस व्यवसाय में पैसा मिलने लगे , वहां से मानवता का ह्रास होने लगता है । बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी.

Comment by Shubhranshu Pandey on June 5, 2015 at 7:07pm

आदरणीय विनय जी,

चिकित्सक का एक स्याह चेहरा दिखाया है. ना जाने कितने मरीज जाने अनजाने इनके व्यापार का हिस्सा बन जाते हैं

सुन्दर कथा

सादर.

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 6:35pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 5, 2015 at 5:49pm

बहुत ही कम शब्दों में गहरी बात कहती एक सार्थक रचना ! 

आदरणीय विनय कुमार जी सादर बधाई स्वीकार करे,

Comment by विनय कुमार on June 5, 2015 at 3:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2015 at 12:19pm

चिकित्सा व्यवस्था की कलई खोलती  उद्देश्यपूर्ण कथा.  सुन्दर कथा.

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