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रोज रोज बातें बदल लेती तू(कविता)

रोज-रोज बातें बदल लेती तू,
रोज-रोज घातें बदल लेती तू।1
मंजिल मुझे तो मिली ही नहीं,
रोज-रोज नाते बदल लेती तू।2
मैं बातों से तेरी मचलता कभी,
रोज-रोज अपने मचल लेती तू।3
शब्दों से तेरे बुनता मैं गीत कोई,
रोज-रोज मेरी गजल लेती तू।4
भंगिमा पे तुम्हारी भटकूँ कहाँ?
रोज-रोज रुख अचल लेती तू।5
चलता चला यूँ तो मैं ही अकेला,
रोज-रोज रूकी,न चल लेती तू।6
कहे बिन दिन तू ले लेती है मेरे,
रोज-रोज रातें बेकल लेती तू।7
तुम्हारी हँसी में मैं ढलता गया,
रोज-रोज मेरी न ढल लेती तू।8
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 7:28pm

आभार आपका आदरणीय श्याम भाई। 

Comment by Shyam Narain Verma on May 22, 2015 at 11:25am
बहुत खूबसूरत रचना के लिये आपको बधाई ॥

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