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मुझे अच्छा लगा ....इंतज़ार

तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा ! 
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !! 


दुप्पट्टा खिसका कर 
चाँद की झलक दिखाना अच्छा लगा !
पास से निकली तो
हलके से मुड़ के तेरा मुस्कुराना अच्छा लगा !
बदली से निकल कर आज
चाँद का सामने आना अच्छा लगा !!


मिलने नहीं आयी मगर
रात सपनों में तेरा आना अच्छा लगा !
ला इलाज ही सही मगर
प्रेम का ये रोग लगाना अच्छा लगा !
तनहा हूँ मगर मुझे
इस तरहां दिल को जलाना अच्छा लगा !! 

**************************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by babita choubey shakti on May 18, 2015 at 3:23pm
आदरणीय जी बहुत सुंदर बहुत ही प्यारी बधाई
Comment by Samar kabeer on May 18, 2015 at 10:30am
जनाब मोहन सेठी 'इंतज़ार' जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on May 18, 2015 at 10:02am
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ

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