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फ्लेक्सिबिलिटी....(लघुकथा)

“ओय! रितु.. अब बता कैसी लग रही हूँ...?” सोनिया ने पूरा ट्रडिशनल श्रृंगार करके, अपनी फ्रेंड से पूछा

“अरे! सोनिया. तू तो बिलकुल अबला लग रही है यार. भारतीय नारी..हा हा हा हा”

“हाँ! यार..अबला ही तो दिखना होगा. ऐसा मेरे वकील का कहना है, ताकि कल कोर्ट में जज सहानुभूति के तौर पर जल्दी से मेंटेनेंस बना देगा तो  मुझे अपने हसबेंड के घिसे-पिटे विचारों और बूढ़े सास-ससुर की खांसी-खुजली से छुटकारा मिल जाएगा.”

"उफ्फ!! बड़ी दूर की सोच होती है यार, वकीलों की.. अब चल ये पकड़ तेरे जींस-टॉप, चेंज कर  और जल्दी चल के कोल्ड कॉफ़ी पिलवा ”

                                          

 

  जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 899

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Comment by Shubhranshu Pandey on May 19, 2015 at 6:29pm

आदरणीय जितेंद्र जी, 

सुन्दर कथा. वास्तविकता के बहुत ही पास. मेरे जाननेवाली एक लड़की ने इसी तरह से जज के सामने नाटक कर के लडके वाले से दो लाख झटक लिये थे. 

आज सम्बन्ध एक तरह से लेना और देना हो गया है. हर जगह क्या मिला का फ़ार्मुला लगता है. 

सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 4:17pm

फ्लेक्सिबिल  नहीं रंगे सियार् हैं  ये लोग

सचमुच में इंसानियत के गद्दार हैं ये लोग

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:47am

आदरणीय विनय जी. आप जैसे लघुकथाकार से सराहना पाना ,बड़ा संतोषजनक लगता है, आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:45am

आदरणीय मिथिलेश जी. लघुकथा पर आपकी स्वीकारोक्ति बहुत मनोबल बढाती है, आपकी सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:44am

आदरणीय हरिप्रकाश जी. हमारा संवैधानिक लचीलापन हर मामले में काम आ सकता है. बस उपयोग करने वाला हुनरमंदी होना चाहिए

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:41am

आदरणीय वीरेंद्र जी. आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:39am

आदरणीय अमन जी. आपकी उपस्थिति व् रचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2015 at 12:38am

आदरणीय गिरिराज जी. आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लघुकथा को सार्थकता मिलती है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 12:29am

अपना काम निकालने के लिए किसी भी स्तर पर जाने को तैयार , सुन्दर विषय पर अच्छी लघुकथा ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 18, 2015 at 11:07pm

आदरणीय जितेद्र जी बहुत बेहतरीन विषय उठाया है आपने इस लघुकथा के माध्यम से 

बहुत बधाई इस लघुकथा हेतु 

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