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अतुकांत -- लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर - ( गिरिराज भंडारी )

लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर

******************************

बातें हमेशा मुँह से ही बोली जायें तभी समझीं जायें ज़रूरी नहीं

कभी कभी परिस्थितियाँ जियादा मुखर होतीं हैं शब्दों से ,

और ईमानदार भी होतीं हैं

देखा है मैनें

जिसे परिवार में समदर्शी होना चाहिये

उनको छाँटते निमारते ,

अपनों में से भी और अपना  

 

वैसे गलत भी नहीं है ये

अधिकार है आपका , सबका  

देखा जाये तो मेरा भी है

 

तो, छाँटिये बेधड़क , बस ये जानते रहिये  

आप भी छाँटे जायेंगे , किसी के द्वारा

निकाल दिये जायेंगे चावल में से कंकर की तरह

किसी दिन फेक दिये जायेंगे ,

किसी कोने में ,

क्यों कि , विज्ञान कहता है

हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है

और ,कर्म का सिद्धांत भी तो यही कहता है ,

लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर

 

तय हो गया था उसी दिन आपका भी छाँटा जाना

कब ? कहाँ ? ये कोई नहीं जानता

सिवाय उस समदर्शी परम शक्तिमान के

 

मेरा कहना इतना ही है , अगर आप  समदर्शी नहीं हैं

तो इंतिजार कीजिये आप उस समय का ,

और वक़्त सामने आ जाये तो शिकायत मत कीलियेगा   

आँखें बन्द कर खुद में झाँक झाँक लीजियेगा ।

******************************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:29pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:28pm

आदरणीय समर कबीर भाई , हौसला अफज़ाई का आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 5, 2015 at 7:31am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी गहरा सन्देश देती रचना ....सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 4:58am
सन्देश सही है, पर उन तक पहुंचेगा कैसे जो हर बात पर छांटते हैं , छाँट - छाँट कर बांट्ते हैं, बाँट - बाँट कर छाँटते हैं , गौर से देखिये तो बिला वजह भी छांटते हैं , इसी को समदर्शी होना बताते हैं.
वास्तव में बन्दर बाँट वाली कहानी हैं, पंद्रह प्रतिशत रह जाती है , बँटते बँटते।
लेकिन , मूल बात तो कुछ और ही है , कौन बाँट रहा है, किस किस को बाँट रहा है, उस से कहीं अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या उसे बांटने का अधिकार है ?व्यवस्था के नाम पर वह कर क्या रहा है। समता का यह मतलब होता ही नहीं कि बाँट बाँट कर सबको बराबर कर दो, उसका मतलब तो है सबको बराबर होने दो. वह करोगे नहीं , क्योंकि बांटने में एक सुख जो है.
आपकी एक और प्रभावी रचना के लिए ढेरों बधाई, आदरणीय गिरिराज , जी सादर।
Comment by shree suneel on May 5, 2015 at 1:22am
आदरणीय गिरिराज सर, कविता का दर्शन प्रभावित किया. बधाई आपको.
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 11:21pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,अच्छा संदेश दे रही है आपकी रचना,बहुत ग़ौर से सुना आपकी कविता को,आपका लेखन कामयाब है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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