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शब्दों को नापना नहीं आता

शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
छोड़ मुझे दौडने लगते
पकडने में गिर जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
तले मन गहन समंदर
तल समंदर में खो जाती हूँ
लहरे मेरी सखी सहचरी
लहरों संग खेल जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ
कर जाती हूँ कुछ भी कैसा
चढ जाती हूँ मै मीनार भी
घात बात सह नही पाती
दोहरे लोगों से घबराती हूँ
रोके कितना मुझे जमाना
मन पहाड़ चढ जाती हूँ
शब्दों को नापना नहीं आता
अक्षर गिनते कतराती हूँ


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 569

Comment

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Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:35pm
रचना पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने हेतु आभार आदरणीय विजय निकोरे जी
Comment by vijay nikore on May 12, 2015 at 4:37pm

अति सुन्दर भाव। बधाई।

Comment by kanta roy on May 8, 2015 at 8:19pm
रचना पसंदगी के लिए हृदय तल से आभार आपको परम आदरणीय डा . विजय प्रकाश शर्मा जी .... कोशिश करूँगी सदा आपके मानकों पर कथा का सृजन कर पाऊँ ॥ आभार
Comment by kanta roy on May 8, 2015 at 8:15pm
आभार आपको परम आदरणीय पंकज जी , अच्छा लगा यह जानकर कि आपको रचना पसंद आई । आभार
Comment by Pankaj Joshi on May 8, 2015 at 8:12pm

वाह्ह सुंदर 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on May 8, 2015 at 7:40pm

मन पहाड़ चढ जाती हूँ,
अत्यंत आशावादी सृजन हेतु बहुत बधाई आ० कांता रॉय जी.

Comment by kanta roy on May 8, 2015 at 7:09pm
आभार आपको आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पसंदगी के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:33pm

आदरणीया कांता जी बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

शब्दों को नाप नहीं सकते तो क्या  

अहसासों से भरी हुई है ये कविता 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुत पर 

Comment by kanta roy on May 5, 2015 at 12:37pm
घबरा जाती हूँ मै अक्सर
नई बातों को समझने में
कुछ कमतर लिख पाती हूँ
इसलिए जरा घबराती हूँ .......
मेरा हौसला बढाने के लिए इस मंच पर हृदय से आभार आपका आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 5, 2015 at 9:26am

बहुत सुंदर प्रस्तुति, आदरणीया कांता जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. आप यहाँ लिखते रहिये..सादर!

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