For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आवारा ( लघु-कथा )

पापा आवारा किसे कहते हैं  ? चार साल के बिट्टू के इस प्रश्न पर मैं थोडा चौंका , फिर गोद में लेकर प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर बोला, बेटा आवारा उसे कहते हैं जिसका कोई नहीं होता, जो व्यर्थ गली-गली घूमता है ! ...तो ..पापा  क्या दादा जी का कोई नहीं है... ? जो मम्मी रोज कहती है ....इस उम्र में भी भटकता रहता है आवारा जैसा ....शाम को भोजन के वक्त घर याद आता है ..............  

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

राजू आहूजा 

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by rajkumarahuja on April 17, 2015 at 4:58pm

आप शायद ठीक कह रही हैं माननीया सविता मिश्रा जी !

Comment by savitamishra on April 16, 2015 at 11:06pm

अच्छी लघुकथा..आजकल ऐसे आवारा लोगो की तादाद बढ़ रहीं हैं

Comment by rajkumarahuja on April 16, 2015 at 10:27pm

माननीय गिरिराज भंडारी जी , इंसान की उम्र में एक पड़ाव ऐसा भी आता है, जब उसके अपनों के पास भी उसके लिए समय नहीं रहता ! जब उसे शेष जीवन जीने के लिए प्यार और सहानुभूति के स्थान पर तिरिस्कार और अपमान मिलता है , तो उस एकाकीपन को  इस दौर में " आवारा " जैसा संबोधन मिलना कोई अतिश्योक्ति नहीं ....सादर !   

Comment by rajkumarahuja on April 16, 2015 at 10:03pm

माननीय सर्वश्री , जवाहरलालसिंह जी,  गिरिराज भंडारी जी,  डा. विजय शंकर जी,  नीरज कुमार "नीर" जी,  सुभाष पांडे जी  एवं जीतेन्द्र पस्टारिया जी, प्रयास की सराहना हेतु ...आभार ! आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं आगे भी मिलती रहेंगी ऎसी आशा के साथ .........  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 16, 2015 at 7:58pm

बहुत बढ़िया लघुकथा, आदरणीय राजकुमार जी. बधाई स्वीकारें..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2015 at 6:20pm

अच्छी लघुकथा हुई है, आदरणीय राजकुमारजी.

वैसे ऐसे वाकयों पर लघुकथायें आती रही हैं. लेकिन आपकी शैली अवश्य अच्छी लगी है. 

शुभेच्छाएँ

Comment by Neeraj Neer on April 16, 2015 at 5:41pm

बहुत मार्मिक ॥ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 16, 2015 at 4:52pm
इस उम्र में भी भटकता रहता है आवारा जैसा ....शाम को भोजन के वक्त घर याद आता है ..............
लघु- कथा तो यहां है , इस पंक्ति में , सुन्दर , बधाई , आदरणीय राजकुमार जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 3:52pm

आदरणीय , आवारापन , आदत भी हो सकती है और मज़बूरी भी , घर जब बैठने उठने के लायक न रह जाये तो आवारा भटकना भी पड़ सकता है , मै कथा को इस अर्थ मे ले  रहा हूँ । कथा के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 16, 2015 at 12:44pm

बच्चे मन के सच्चे वही सीखते हैं जो देखते हैं .... बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
4 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service