For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जैसे मछली की हड्डी खाने वाले को काँटा है

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

 

जैसे मछली की हड्डी खाने वाले को काँटा है

वैसे मज़लूमों का साहस पूँजीपथ का रोड़ा है

 

सारे झूट्ठे जान गए हैं धीरे धीरे ये मंतर

जिसकी नौटंकी अच्छी हो अब तो वो ही सच्चा है

 

चुँधियाई आँखों को पहले जैसा तो हो जाने दो  

देखोगे ख़ुद लाखों के कपड़ों में राजा नंगा है

 

खून हमारा कैसे खौलेगा पूँजी के आगे जब

इसमें घुला नमक है जो उसका उत्पादक टाटा है

 

छोड़ रवायत भेद सभी का खोल रहे हैं ‘सज्जन’ जी

जल्दी ही अब इनका भी कारागृह जाना पक्का है

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:21am
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह बना रहे
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:20am
शुक्रिया आ. हरि प्रकाश दूबे जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:09am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. गोपाल नारायन जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:08am
बहुत बहुत धन्यवाद आ. विजय शंकर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:07am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. मिथिलेश वामनकर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:05am
बहुत बहुत शुक्रिया नज़ील साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:04am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. दिनेश कुमार जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 6, 2015 at 10:03am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. सुनील प्रसाद जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2015 at 11:57pm

क्या बात है ! आदरणीय धर्मेन्द्र भाई बिल्कुल नये विषय मे आपने गज़ल कही है , वाह !!  सभी अशार बहुत सुन्दर लगे पर इसका जवाब नहीं --

चुँधियाई आँखों को पहले जैसा तो हो जाने दो  

देखोगे ख़ुद लाखों के कपड़ों में राजा नंगा है    --   हार्दिक बधाइयाँ ॥

 

Comment by Samar kabeer on April 5, 2015 at 10:56pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ही अच्छी ग़जल से नवाज़ा है आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service