| १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ - हजज मुसम्मन सालिम | 
| चमन में फूल खिलते हैं खुशी का राज होता है | | 
| ख़ुशी में झूमते भौंरे मजे से काज होता है | | 
| खिले जब फूल डाली में नजारा ही बदल जाये , | 
| हजारों लोग आते हैं अनोखा साज होता है | | 
| उदासी का सबब होता उजाड़े जब चमन कोई , | 
| विराने में कहाँ कोई खुशी का काज होता है | | 
| मजा वैसा नहीं आता अकेले राह चलने में , | 
| अगर हो साथ में कोई मजे से काज होता है | | 
| अगर कुछ हो परेशानी बताते हैं अकेले में , | 
| अगर साथी सफर में हो अलग ही नाज़ होता है| | 
| उमर तनहा गुजर जाये सहारा ढूढते जग में , | 
| उजाड़ो ना चमन वर्मा जहाँ बेताज होता है | | 
| श्याम नारायण वर्मा | 
| (मौलिक व अप्रकाशित) | 
Comment
अ० वर्मा जी
सुन्दर गजल है . आपने' काज होता है' का दो बार प्रयोग किया इ ऐसा नहीं होना चाहिए . सादर .
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