For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक मुसाफिर राह में सिन्दूर से नहला गया (ग़ज़ल "राज")

2122  2122  2122  212

मोतियों को गूंथकर धागा सदा हँसता गया

जंग खाये रास्तों को कांरवाँ चमका गया

 

ओस से भीगे बदन पर थी नजर खुर्शीद की

प्यास उसकी खुद बुझाकर फूल इक खिलता गया

 

बन गये अफ़साने कितने और नगमें जी उठे 

जब जमीं ने सर उठाया आसमां झुकता गया

 

कहकशाँ में यूँ नहाई चाँदनी जल्वानशीं

नूर उसका देखकर महताब भी पथरा गया

 

हुस्न की मलिका कली की देख वो अँगड़ाइयां  

चूम कर  रुख्सार उसके दफअतन भँवरा गया

 

फिर तबस्सुम जिन्दगी के शुष्क लब पर आ गई

कनखियों से देखता जब अब्र का टुकड़ा गया

 

जी उठी फिर वादियों में वो मुहब्बत की ग़ज़ल

इक परिंदा जब तरन्नुम में उसे गाता गया

 

जुगनुओं की बज्म से जब रात घर वापस चली

इक मुसाफिर राह में सिन्दूर से नहला गया

 

झील में उगता सवेरा जाल में मछली फँसी

बढ़ गई चहरों की रंगत घर में जब झोला गया 

 

कुलबुलाती भूख की वो चहचहाहट थम गई 

वालिदा की चोंच से जब पेट में दाना गया

 

'राज'  कुदरत भी अछूती है न मानव स्वार्थ से   

हर करिश्मा तो नफ़ा नुक्सान में तोला गया 

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on March 23, 2015 at 1:18pm
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 1:03pm

फिर तबस्सुम जिन्दगी के शुष्क लब पर आ गई

कनखियों से देखता जब अब्र का टुकड़ा गया

आदरणीया दीदी , बहुत अच्छी गजल . सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 12:56pm

आ० मुकेश श्रीवास्तव जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ आपने वो शेर कोट किया जो मुझे खुद भी बहुत प्रिय है 

तहे दिल से आभार आपका .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 12:55pm

आ० धर्मेन्द्र जी ,जब कोई ग़ज़लकार ग़ज़ल पर दाद देता है तो ग़ज़ल  के प्रति आश्वस्तता और संतुष्टि मिलती है वाही इस वक़्त महसूस कर रही हूँ दिल से आभार आपका |

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 23, 2015 at 11:58am

 

कुलबुलाती भूख की वो चहचहाहट थम गई 

वालिदा की चोंच से जब पेट में दाना गया - PYAREE RACHNAA BHAEE JEE  - BADHAAEE

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2015 at 11:35am
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. राजेश कुमारी जी, दाद कुबूल करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 9:17am

मिथिलेश भैय्या ,ग़ज़ल पर शेर दर शेर समीक्षा से अभिभूत हूँ ,आपके सुझाव स्वागत योग्य हैं उला में दूसरे 'बन गए' का विकल्प सोचूंगी 

दूसरे सुझाव के अनुसार उला  में की की जगह 'में' उत्तम रहेगा किन्तु सानी वैसा ही रखूंगी क्यूंकि ग़ज़ल शब्द का दुहराव ठीक न होगा 

मकते में तख़ल्लुस जोड़ना बहुत बेहतरीन सुझाव है | आपका तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 9:08am

आ० हरिप्रकाश दूबे जी ,आपकी प्रोत्साहित प्रतिक्रिया ने मेरे लेखन को सार्थक किया मेरी लेखनी को नव ऊर्जा प्रदान की दिली शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 9:06am

गुमनाम पिथैरा गढ़ी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 23, 2015 at 9:05am

निर्मल नदीम जी ,ग़ज़ल पर आप जैसे ग़ज़लकार की दाद मिली ग़ज़ल स्वतः सार्थक  हुई तहे दिल से आभारी हूँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service