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ग़ज़ल :- तन्हाई में अक्सर सोचा करते हैं

बह्र:-फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ैलुन फ़ै

तन्हाई में अक्सर सोचा करते हैं
हम को क्या करना था और क्या करते हैं

हम शाईर हैं,हम से क्या पोशीदा है
दुनिया को हर रंग में देखा करते हैं

उनसे बढ़कर झूट न कोई बोलेगा
जो भी सच कहने का दावा करते हैं

ऐसे भी नादान हैं जो घर का रोना
बाज़ारों में बैठ के रोया करते हैं

उनकी आदत है सैराब नहीं करते
क़तरा क़तरा प्यास बुझाया करते हैं

दुनिया वाले चैन से सोते हैं और हम
ज़ख़्मों की गहराई नापा करते हैं

दुनिया भर की लानत है उन लोगों पर
जो अपने ईमान का सौदा करते हैं

अपना तो ईमान यही है यार "समर"
जो भी वह करते हैं अच्छा करते हैं


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by vandana on March 22, 2015 at 4:52am

ऐसे भी नादान हैं जो घर का रोना
बाज़ारों में बैठ के रोया करते हैं

वाह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल आदरणीय समर सर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 22, 2015 at 2:40am
वाह वाह आदरणीय समर कबीर जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाये।
Comment by gumnaam pithoragarhi on March 21, 2015 at 10:45pm


ऐसे भी नादान हैं जो घर का रोना
बाज़ारों में बैठ के रोया करते हैं

वाह समर जी खूब ग़ज़ल वाह बधाई ....................

Comment by दिनेश कुमार on March 21, 2015 at 6:41pm
आदरणीय समर कबीर सर, बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। हर शे'र बहुत उम्दा। रवानी भी खूब है। शब्द बहुत असरदार हुए हैं। वाह वाह वाह, सर। बहुत दाद कबूल कीजिए।
Comment by maharshi tripathi on March 21, 2015 at 5:21pm

दुनिया वाले चैन से सोते हैं और हम
ज़ख़्मों की गहराई नापा करते हैं,,,,,,जख्म तो ठीक आप तो गजल में भी गहराई नापते हैं ,,,बहुत बहुत बधाई आपको आ.|

Comment by Shyam Narain Verma on March 21, 2015 at 4:21pm
सुन्दर गज़ल हेतु बधाई
Comment by Nirmal Nadeem on March 21, 2015 at 2:55pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल वाह वाह वाह बहुत खूब

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