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ए-हुस्न-जाना...............'जान' गोरखपुरी

ए-हुस्न-जाना..

दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...

अब मुझको आया कुछ आराम है।

कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।

ए-हुस्न-जाना..

दिल अब तुझसे बेजार है..

हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।

हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।

ए-हुस्न-जाना..

दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...

मालूम मुझको तेरा मकाम है।

के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।

ए-हुस्न-जाना..

छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...

दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।

मै नहीं! तू नहीं! दर नहीं! हरम नहीं!

कोई है,सब उसी के नाम हैं।

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मौलिक व् अप्रकाशित (c) जान गोरखपुरी

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on March 20, 2015 at 7:25pm

इस ,सुन्दर ,,भावपूर्ण रचना हेतु ,,आपको हार्दिक बधाई आ.बड़े भाई ( krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी ) |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 20, 2015 at 5:33pm

प्रिय  कृष्णा

बहुत सुन्दर . रचनामे गंभीरता है .

Comment by Shyam Mathpal on March 20, 2015 at 10:59am

आ. कृष्णा मिश्रा जी. बहुत खूब. बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on March 20, 2015 at 10:44am
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।

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