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चाहिये गंगा नहाना जा नहाते गंदगी में ,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२ - रमल मुसम्मन सालिम
छोड़ कर आतंक का दर नेक कोई काम करते |
जान  लेने  के सिवा सारे जहाँ में नाम करते |
लोग जो आये जहाँ में  चाँदनी सब के लिए है ,
तोड़  घेरा  बादलों का दे  खुशी आराम  करते |
चाहिये    गंगा   नहाना   जा नहाते गंदगी में ,
सादगी का सोच रख कर ही जहाँ में काम करते |
हर पुराणों में लिखा है जीव खुश रह कर चले गा  ,
मात  देना  छोड़  दो जो आह सा  पैगाम करते |
देश दुनिया खुश रहे खुश  लोग सारे  हो  चमन में  ,
लोग ऐसे  ना   मरे मिल मौत को नाकाम करते |
आदमी   ही    आदमी   को   रंज में खा जा रहा है , 
छोड़ वर्मा दानवी पथ सब  खुशी से काम  करते |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 11:41am

संदेशपरक गज़ल पर -आमीन 

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:30am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी ,

एक अच्छा संदेश. बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2015 at 10:41am

रचना पर उत्साहित करती प्रतिक्रिया  के लिए हार्दिक आभार

सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 10:40am
आदमी ही आदमी को रंज में खा जा रहा है ,
छोड़ वर्मा दानवी पथ सब खुशी से काम करते |
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , इस सुन्दर प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई , सादर।

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