For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : गाँव कम हैं प्रधान ज्यादा हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

---------

फ़स्ल कम है किसान ज़्यादा हैं

ये ज़मीनें मसान ज़्यादा हैं

 

टूट जाएँगे मठ पुराने सब

देश में नौजवान ज़्यादा हैं

 

हर महल की यही कहानी है

द्वार कम नाबदान ज़्यादा हैं

 

आ गई राजनीति जंगल में

जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं

 

हाल क्या है वतन का मत पूछो

गाँव कम हैं प्रधान ज़्यादा हैं

---------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 1055

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 9, 2015 at 6:16pm

आदरणीय सौरभ जी एवं भुवन जी, मैं मतले को बदलने के लिए प्रयासरत हूँ। अश’आर पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by भुवन निस्तेज on March 7, 2015 at 2:35pm
आदरणीय सज्जन भाई आपको पढ़कर आनंदित हुवा । बेहतरीन अशआर कहे हैं आप ने । और आशा करता हूँ की मतले पर जारी बहस को भी निकास मिलेगा । कृपया बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2015 at 2:39pm

इस ’आर्ष रचना’ के लिए हार्दिक बधाई,आदरणीय धर्मेन्द्र भाई.

काफ़िया ’सान’ ही नहीं गड़बड़ाया है, इता का दोष भी हावी है.

अलबत्ता शेर के कथ्य कमाल के हुए हैं. लेकिन आप जैसे सिद्धहस्त और गहन ग़ज़लकार के लिए अपवादों का उदाहरण दिया जाना थोड़ा अटपटा लगा.

फिर भी, हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 3:56pm
इतना अच्छा सुझाव दिये हैं बागी जी और कहते हैं कि हाथ तंग है। और अगर आपका हाथ तंग है तो मैं ही कौन सा ग़ज़ल का ज्ञाता हो गया हूँ। :)
कई शायर ई छूट लेते दिखाई दिये तो मैंने भी ले ली। लेकिन आपके सुझावों के बाद मैं मत्ले पर दुबारा विचार करूँगा।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2015 at 1:38pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, हम लोग तो एक दुसरे से ही सीखते हैं न ! आप तो जानते ही हैं ग़ज़ल में हाथ मेरा तंग है, मैं तो जानने की उत्सुकता वश पूछ लिया था, आप यदि जानबूझकर काफिया उस तरह निर्धारित किये हैं और छूट की बात कर रहे हैं तो अवश्य ही इसप्रकार की छूट जायज होगी. लेकिन पुनः आप दुविधा बढ़ा दिए .....

//आदरणीय योगराज जी, एवं  बागी जी आपने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया है। काफ़िया के नियमों के अनुसार किसान और मसान हमकाफ़िया नहीं हो सकते।//
यदि काफिया नियमानुसार किसान और मसान हम्काफिया नहीं हो सकते तो फिर छूट की बात और उदाहरण बेमानी है ना !

// मज़बूर होकर यदा कदा ली गई इस छूट//
ऐसी क्या मज़बूरी साहब ! ग़ज़ल कही मज़बूरी में कही जाती है ! 


//काफ़िया तंग है//
भाई यहाँ पर तंग काफिया तो नहीं है, मतला में एक काफिया को बदल कर आसानी से "आन" पर काफिया बैठा सकते हैं ...आप की ग़ज़ल से ही मैं दो मिसरों का उलट फेर विनम्रता से करना चाहूँगा .....

फ़स्ल कम है किसान ज़्यादा हैं

जानवर कम, मचान ज़्यादा हैं

आ गई राजनीति जंगल में

(ये) कम ज़मीनें मसान ज़्यादा हैं

सादर !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 12:01pm
बहुत बहुत शुक्रिया दिनेश कुमार जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 12:00pm
बहुत बहुत शुक्रिया मोहन सेठी साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 11:59am
बहुत बहुत शुक्रिया नादिर ख़ान साहब
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 11:58am
चचा ग़ालिब जो शायरी में हम सब के चचा थे हैं और रहेंगे उनकी ये मशहूर ग़ज़ल भी पेश है।

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना

गिरियां चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां होना

वाए, दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना

जल्वा अज़-बसकि तक़ाज़ा-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईना भी चाहे है मिज़गां होना

इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां होना

ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात
तू हो और आप बसद-रंग गुलिस्तां होना

इशरत-ए-पारा-ए-दिल ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
लज़्ज़त-ए-रेश-ए-जिग़र ग़र्क़-ए-नमकदां होना

की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमां का पशेमां होना

हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 3, 2015 at 11:48am

शुक्रिया somesh kumar जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service