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1.    
पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।
2.    
एक प्रश्न मैं पूछती, देना मुझे जवाब ।
छोरा छोरी क्यो भला, करते प्रेम जनाब ।।
3.    
तेरा सच्चा प्यार है, मेरा है बेकार ।
माॅ की ममता क्यों भला, होती है लाचार ।।
4.    
सोलह हजार आठ में, मिले न राधा नाम ।
सारा जग फिर क्यो भला, जपते राधे श्याम ।।
5.    
मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 11:07pm
सुन्दर , भाव पूर्ण प्रस्तुति, आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी, सादर
Comment by रमेश कुमार चौहान on February 26, 2015 at 10:56pm

आदरणीय त्रिपाढीजी, वामनकरजी, एवं दुबेजी आप सभी ने  रचना के भाव को दिया, आप सभी का हार्दिक आभार

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 26, 2015 at 10:54pm

आदरणीय श्रीवास्तवजी एवं लड़ीवालाजी आपके मार्गदर्शन स्वीकारर्य सादर धन्यवाद

Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 9:14pm

आदरणीय रमेश जी इस सुन्दर रचना पर बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 7:07pm
आदरणीय रमेश जी सुन्दर दोहावली हेतु बधाई। गुणीजनों के मार्गदर्शन पर अवश्य ध्यान दे। थोड़ी सी कसर है।
Comment by maharshi tripathi on February 26, 2015 at 5:14pm

मातु पिता के बात पर, जिसने किया विवाह ।
होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।
................................असल प्रेम के गुर बताती सुन्दर रचना ,,बधाई स्वीकारें आ.रमेश जी |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 26, 2015 at 4:08pm

प्रेम विवाह पर लाजवाब दोहे रचे है,हार्दिक बधाई | प्रथम दोहे के इस प्रकार लिखा जान उचित लगता है, देखे -

पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ।  ---  स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेम जान,
स्वार्थ मोह में क्यों भला, देकर प्रेमी जान ।।      पावन पवित्र प्रेम को, करते क्यों बदनाम ?

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 26, 2015 at 3:15pm

आ० रमेश जी

आपके प्रश्न बड़े मजेदार है i भाव रचना सुघर है i शिल्प की कुछ बात करता हूँ -

सोलह हजार और आठ में प्रवाह बाधित प्रतीत होता है i

मातु-पिता के  बात पर ---------यहाँ के की जगह की होना चाहिए

होते उनके भी प्रबल, इक दूजे पर चाह ।।-----------होती उनमे भी प्रबल  इक दूजे की चाह i   ------ सादर i

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