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वो मुझे देखकर मुस्कराती रही..

मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।

मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम धरा हो तो बरसूंगा मैं
फिर संभालो मुझे और मेरा जलजला,
उसको झूला जो सावन का अच्छा लगा
देर तक फिर पसीना बहाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

अब तलक संगदिल ही समझता था मैं
आज छूकर लगा तुम हो नाजुक कली,
आईने की तरह मुझको देखा करो
मन को भाये तेरा रूप ये संदली,
कृष्ण के प्रेम में डूबकर राधिका
गीत तेरे 'अतुल' गुनगुनाती रही...।।  

                      मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on February 13, 2015 at 10:44am
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by maharshi tripathi on February 13, 2015 at 12:45am

बहत खूब ,,,,,,सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें आ, अतुल जी |

Comment by ajay sharma on February 12, 2015 at 11:37pm

bahut khoob rachna hai janab........zindabad 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 11:12pm
बहुत सुन्दर , आदरणीय अतुल कुशवाहा जी, बधाई, शुभकामनाएं।

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