For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में

OBO पर आकर बहुत अच्छा लगा. यहाँ पर एक से एक उस्ताद शायर और कवियों की रचनाएं पढ़कर आनंद आ गया.
अपनी एक नयी ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ, आप सब से मार्गदर्शन की आशा है.


अँधेरा है नुमायाँ बस्तियों में
उजाले कैद हैं कुछ मुट्ठियों में

ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में

फ़लक पर जो दिखा था एक सूरज
कहीं गुम हो गया परछाइयों में

तेरी महफ़िल से जी उकता गया है,
सुकूँ मिलता है बस तन्हाईयों में

लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में

उतरना ध्यान से दरिया में 'साहिल'
मगरमच्छ भी छुपे हैं, मछलियों में

 

--- संदीप 'साहिल'

Views: 563

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saahil on June 14, 2011 at 8:53pm
शुक्रिया नमन जी!
Comment by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:26pm
ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में

लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में

बेहद गहरे सन्दर्भ..खूबसूरत और नए प्रतिमानों के साथ....
इसके लिए अंतःकरण से बधाई स्वीकारें....
Comment by Saahil on March 22, 2011 at 3:28am
वीनस जी और राजेश जी,
हौसला बढ़ने का शुक्रिया!
Comment by राजेश शर्मा on March 20, 2011 at 9:33am
लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में
इस शेर में गज़ब का विस्तार है.यादों के झोंके भी सिगरेट के कश की तरह ही आनंद देते हें लेकिन दोनों की ही अधिकता घातक भी होती है
याद के लिए नया  प्रतीक पहली बार देखा  . साहिल जी,अच्छे शेरों के लिए बधाई .   
Comment by वीनस केसरी on March 20, 2011 at 2:02am
लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में

बहुत उम्दा शेर कहा है

बधाई कबूल करें
Comment by Saahil on March 20, 2011 at 1:31am
वंदना जी, योगराज जी, अरुण जी
दाद के लिए बहुत शुक्रिया!
Comment by Abhinav Arun on March 18, 2011 at 8:13pm

वाह साहिल जी क्या खूब शेर कहे आपने बिलकुल प्रासंगिक और प्रभावी अंदाज़ है आपका | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको |

लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में

बिलकुल नए तरह का शेर नयी ज़मीन पर ..बहुत बहुत बधाई |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 17, 2011 at 11:58am

संदीप साहिल जी, छोटी बहर में बहुत ही आला पाए के आशार कहे हैं आपने, पढ़कर दिल को सुकून मिला ! यूँ तो सभी शे'र बहुत खूबसूरत हैं मगर यह शे'र हुस्न-ए-ग़ज़ल है :

 

//लिए जाता हूँ काश, मैं फिर लिए हूँ,

तेरी यादों का सिगरेट उँगलियों में !//

 

वाह वाह वाह - बहुत खूब !


Comment by Saahil on March 16, 2011 at 8:43pm
गणेश जी और विवेक जी, होंसला बढ़ने के लिए शुक्रिया!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 16, 2011 at 8:31pm
ये पीकर तेल भी, जलते नहीं हैं
लहू भरना ही होगा अब दीयों में.............वाह वाह , बेहद उम्द्दा ख्यालात

तेरी महफ़िल से जी उकता गया है,
सुकूँ मिलता है बस तन्हाईयों में........कभी कभी ऐसा होता है जब बनावटीपन से दिल उब सा जाता है और जी चाहता है की प्रकृति के संग बिलकुल तन्हा रहा जाय , सच्ची बयानी,

लिए जाता हूँ कश, मैं फिर लिए हूँ
तेरी यादों की 'सिगरेट' उँगलियों में.....वाह भाई जी वाह, पहली बार सुना यादों की सिगरेट के बारे में, बहुत ही खुबसूरत उपमा अलंकार का प्रयोग |

उतरना ध्यान से दरिया में 'साहिल'
मगरमच्छ भी छुपे हैं, मछलियों में........बिलकुल सत्य , बहुत ही सुंदर मकता निकाला है ,

सब मिलाकर एक बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति , उम्द्दा अभिव्यक्ति , मतले से लेकर मकता तक कसी हुई ग़ज़ल , कोटिश: बधाई स्वीकार करे संदीप जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service