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“हमारी मिट्टी और जड़ों को खोद-खोदकर ये चूहे हमारे हरे-भरे टापू को उजाड़ बना देंगे और फिर कहीं और बढ़ जाएँगे I“

एक हरे-भरे पेड़ ने चिंता व्यक्त की |

“सकरात्मक सोचों ! जहाज़ के डूबने से पहले इन्होनें बहुत-कुछ खाया-पचाया है, ये हमें पौष्टिक खाद देंगे |”

प्रसन्न मुद्रा में एक अन्य पौधा बोला |

जोर का आँधी-पानी आया | कई विशालकाय वृद्ध पेड़ों की जड़े बाहर आ गईं और कुछ वहीं गिर पड़े |कुछ समय पश्चात वहाँ नई प्रजति के बीज जमने लगे, टापू पर नया बसंत आ चुका था |

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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by savitamishra on February 3, 2015 at 11:12pm

सुंदर लघुकथा के लिए बधाई आपको

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 3, 2015 at 8:05pm

बहुत बेहतर लघुकथा, आदरणीय सोमेश भाई जी. हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:47pm

आदरणीय सोमेश भाई , रचना बढ़िया लगी , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by kanta roy on February 3, 2015 at 1:59pm
नव निर्माण अपना रास्ता तलाश ही लेती है । विध्वंस के बाद भी पुनर्जीवन प्रकृति का चिर निरंतर गति है । इस सुंदर कथा के लिए बधाई स्वीकार करे आ. सोमेश कुमार जी
Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:06am

आदरणीय सोमेश जी अच्छी रचना है |हार्दिक अभिनन्दन |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2015 at 7:56am
प्रकृति अपने ढंग से आपूर्ति , क्षतिपूर्ति, प्रतिपूर्ति करती है। इसे चित्रित करती बहुत सार्थक लघु - कथा , बधाई आदरणीय सोमेश जी, सादर।
Comment by vandana on February 3, 2015 at 7:40am

बहुत बढ़िया आदरणीय प्रतीकों का खूबसूरत प्रयोग 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 2, 2015 at 9:57pm
बहुत खूब, सोमेश कुमारजी। प्रतीको का अति सुन्दर प्रयोग।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:20pm

आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर और सफल लघुकथा. हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:56pm

आदरणीय सोमेश भाई , सुन्दर लघुकथा  .."टापू पर नया बसंत आ चुका था"......जीवन का सत्य , पुरानी पीढ़ी चली जाती है ....नयी आ जाती है ..... बधाई आपको ! 

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