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ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२........डराओ मत

१२२२—१२२२—१२२२

उमंगों के चरागों को बुझाओ मत

उजाले को अँधेरों से डराओ मत

 

न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का            तगाफ़ुल= उपेक्षा

परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत

 

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत

 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत

 

सजाओ आइने दीवार में लेकिन

हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत

 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत

 

यहाँ हर आँख में नमकीन आँसू हैं

किसी को ज़ख्म दिल के तुम दिखाओ मत

 

असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव

शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत                क़ुमक़ुमा = बल्ब\लट्टू 

 

लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं

ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 28, 2015 at 1:00pm

सताओ मत सताओ मत सताओ मत .. क्या आवृति है !

ग़ज़ले कहना एक बात. अच्छी ग़ज़लें कहना एक बात. लगातार अच्छी बातें करना बड़ी बात. आप बड़ी बातें कर रहे हैं, आदरणीय ख़ुर्शीद भाईजी.
बहुत खूब ! बहुत खूब ! बहुत खूब !

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:57pm

आदरणीय गिरिराज सर , आदरणीय मिथिलेश जी , आपकी मुहब्बत तथा हौसलाअफजाई ही अशहार में रंग भरती है |

अज़ीज़ों की मुहब्बत है ग़ज़ल का हुस्न 

इसे अपनी कहो, मेरी बताओ मत 

सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:49pm

आदरणीय गुमनाम सर , आदरणीय विजयशंकर सर,  आ. अतुल कुशवाहा जी ,आप सभी का दिल की गहराइयों से आभार |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 28, 2015 at 12:45pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आदरणीय हरिप्रकाश सर , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार |सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2015 at 11:56am

आ० खुर्शीद भाई मैं भी मिथिलेश भाई का हमराह हूँ , हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:53am

नए शायर ज़रा सहमें  हुए है हम 

ग़ज़ल ऐसी गज़ब कह यूं डराओं मत 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:28am

वाह वाह वाह 

खुर्शीद सर अब क्या जां निकाल के मानोगे आप. 

क्या ग़ज़ल हुई है ! क्या अशआर हुए है ! एक से बढ़कर एक........ खुबसूरत मतला......

कंकर तगाफ़ुल का और परिंदे हसरतों के

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे और कद मेरा घटाओ मत

सजाओ आइने और हक़ीक़त से निगाहें चुराओ मत

आँख में नमकीन आँसू और ज़ख्म दिल के

ये मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी जैसा रब्त है बस दिल निकाल के पेश कर दूं 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत.... वाह 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत.... क्या बात है! उम्दा.

असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव

शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत.... बेहतरीन शेर 

लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं

ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत .... मकते ने क्या व्यंग्य किया है ... बेहतरीन.

ग़ज़ल के एक दो अशआर तो ऐसे है कि मेरी मुकम्मल गज़लें परेशां है क्योकि जो आप कह रहे है वही उन ग़ज़लों के शेर भी कह रहे है मगर इतने उम्दा नहीं है. इसे पढने के बाद उन्हें खारिज़ मान रहा हूँ. इस ग़ज़ल पर बधाई क्या दूं बस नमन 

Comment by somesh kumar on January 27, 2015 at 11:14pm

इस गज़ल को किस सन्दर्भ से देखूं |दो तीन दिन पहले यशोदा बेन की एक शिकायत पढ़ी थी इसे उसी राजनैतिक ऊँचे कद के पति और अपने अधिकारों के लिए सवाल पूछती पत्नी के लिहाज़ से देखता हूँ |उसकी विरह और त्याग को सोचता हूँ तो ये गज़ल वहाँ फिट होती लगती है |बाकी आम इन्सान पे भी बहुत से से'र लागु होते हैं |इस कामयाब गज़ल पर बहुत बधाई |

Comment by atul kushwah on January 27, 2015 at 10:24pm

Wah khurshhed sahab..bahut khoob

Comment by ajay sharma on January 27, 2015 at 10:08pm

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत........sir ji kya kahte hai .....wah wah

 

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