For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"आज की प्रलय"
कोहरे का कहर सांझ घिरने के साथ साथ बढ़ता जा रहा था, गंगाजी से उठती ठंडी हवा शरीर को छूरी की तरह काट रही थी। विश्वा को लगने लगा था कि आज की रात रेतीली जमीन पर बिछे चिथड़े भी उसको इस प्रलय से नही बचा पायगें। मानवीय आस तो बाकी थी नही सो विश्वा अपने ईष्ठ देव को ही बार बार याद करने लगा।
"भाई ये बहुत अच्छा हुआ जो सुरज ढलने से पहले संस्कार हो गया ।"

"सही कहा भैयाजी नही तो सारी रात ठंडी में गंगा किनारे ही बितानी पड़ती।"
सामने से गुजरते कुछ लोगो की आवाजे सुनकर विश्वा के मन में हलचल सी होने लगी और वो अपने मन से उलझ गया।

"जलती चिता से बेहतर तो इस प्रलयकारी रात का सहारा कोई हो ही नही सकता....।"

"लेकिन एक पन्डित हो कर 'डोम' जैसा कार्य, 'राम राम राम'...।"

"लेकिन आज की प्रलय, नही नही।" "चलो रात भर की तो बात है डोम ही सही।"
और विश्वा चल पड़ा अपने चीथड़े उठाकर शमशान की ओर।

.
'वीर मेहता'

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 527

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 25, 2015 at 9:32pm
Hausalla afzaai ke liye bahut bahut shukriya.....Er. Ganesh Baggi sir.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 2:48pm

भूख, प्यास, गर्मी, ठंढ बाभन या डोम नहीं देखते... आपकी लघुकथा बहुत ही मार्मिक और सदेश परक है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 24, 2015 at 10:25pm
धन्यवाद आप सभी आदरणीय सुधीजनो का। जितेन्दर पस्टारियाजी, हरि प्रकाश दुबेजी और राहुल डान्गीं जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 24, 2015 at 7:47pm

सच! सबसे पहले जीवन. बहुत ही सुंदर चित्रण, आदरणीय वीर मेहता जी.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 24, 2015 at 7:42pm

बहुत बढ़िया .आदरणीय वीर मेहता जी ...... "चलो रात भर की तो बात है डोम ही सही।"और विश्वा चल पड़ा अपने चीथड़े उठाकर शमशान की ओर।..सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 6:57pm
सुन्दर
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 24, 2015 at 5:55pm

Aadharaniya Dr. Vijay Shankarji pratikriya ke liye dil se aabhaar......

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 23, 2015 at 10:31pm
मार्मिक , मजबूरी , यथार्थवादी। बधाई , आदरणीय, सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 23, 2015 at 10:12pm
शिज्जु शकूर जी आप का आभार, रचना को समय देने के लिये और अमूल्य 'कमेंटस' करने के लिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 23, 2015 at 9:33pm

ज़रूरतें कई दफे आडम्बरों पर भारी पड़ जाती हैं, सच ही तो है इंसान ज़िन्दा रहे तो बाकी बातों के बारे में सोच सकता है। बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
20 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service