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रेलवे पुलिस (लघुकथा )

"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी  का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |

"देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर 

"सब ले गए साहब "- कर्मचारी 

"कहता हूँ ,सालों से किसी की चीज मत खाया करो ,छोड़ ये सब चल एक कप  चाय पिला "- अफसर कहते हुए बाहर निकल आते हैं |

"मौलिक व् अप्रकाशित "

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Comment by maharshi tripathi on January 20, 2015 at 2:43pm

आ. गोपालनारायण जी ,,मैंने कोशिश की  ,,आपकी सलाह के लिया धन्यवाद ,हमारा ऐसे ही मार्गदर्शन किया करें |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 20, 2015 at 12:06pm

महर्षि जी

प्रस्तुति और  बेहतर हो सकती थी i मैं आपकी इसी प्रस्तुति को  अपनी मति के अनुसार कुछ ठीक करता हूँ -

"साहब इस डिब्बे में एक आदमी अचेत पड़ा है,शायद जहरखुरानी  का शिकार है " रेलवे पुलिस का कर्मचारी बोला |

"अच्छी तरह देख अपने लिए भी कुछ छोड़ा है या सब ले गए ?- अफसर ने आदेश दिया i

"सब ले गए साहब "

"रेलवे इतना विज्ञापन करती है कि किसी की दी  हुयी  चीज मत खाओ i मगर साले मानते नहीं  i मरने दो ,कमीने को  i अच्छा  खासा मूड  ख़राब कर दिया i चल , एक कप  चाय पिला "|


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 10:50pm
आदरणीय महर्षि भाई जी अच्छी लघुकथा हुई। बधाई।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 7:42pm

बहुत खूब. सुंदर चित्रण आदरणीय महर्षि जी. हार्दिक बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 7:29pm

संवेदनहीन पुलिस का चरित्र उजागर करती सुंदर लघु कथा के लिए बधाई श्री महर्षि जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 6:37pm

संवेदना मर रही है लोगों में, सुन्दर लघुकथा बधाई महर्षि जी !

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