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मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया

हम तुम्हारे थे पर तुम क्यूँ समझी नही
बेवजह सबकी बातों में उलझी रही
संदेहात्मक परिस्थिति भी सुलझी नही
तुम से जुड़ना ही मेरा गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |

तुम से मिलकर फ़कीर दिल भी राजा हुआ
मन का मुरझाया फूल भी ताजा हुआ
मेरे हर दुःख-दर्द का भी जनाजा हुआ
तुम्हारा पास आना भी गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |

तुमने दिए जो जख्म अब वो भरते नही
मेरी सांसे भी रुकने से अब तो डरते नही
मर चुके जो इश्क़ में अब वो मरते नही
तेरे इश्क़ में मरना गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया |

हम बेगाने हुए कोई और आया
हमारे सिवा कोई और भाया
मेरे सपनों  को कोई और लाया
हमसफ़र पे भरोसा गुनाह हो गया
मोहब्बत इस ज़माने में गुनाह हो गया ||

***************************************

"मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by prashant tripathi on January 8, 2015 at 1:59am
bhut khub maharshi ji.....

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2015 at 7:59pm

अच्छी रचना लगी भाई जी , बधाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 6, 2015 at 5:14pm

सुन्दर प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई महर्षि त्रिपाठी जी !

Comment by maharshi tripathi on January 6, 2015 at 5:03pm

मेरी इस रचना पे आप सब के उत्साह के लिए ,हार्दिक धन्यवाद् |

आ.गोपाल जी ,अनुराग जी ,सोमेश जी और मिथिलेश जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 3:35pm

mohabbat to bhayee har jamane me gunaah hee raha  chaloo  aapko apna jamana yad hai I achchhee kavita hai I

Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:36am

sunder prstuti 

Comment by Anurag Prateek on January 5, 2015 at 9:22pm

सुन्दर प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:16pm

बढ़िया और सुन्दर प्रस्तुति  के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें....

कृपया ध्यान दे...

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