For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस नगर में तो मुश्किल हैं तनहाइयाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122    1221     2212

************************
चाँद  आशिक  तो  सूरज दीवाना हुआ
कम मगर क्यों खुशी का खजाना हुआ

****
बोलने   जब   लगी   रात  खामोशियाँ
अश्क अम्बर को मुश्किल बहाना हुआ

****
मिल  भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच  मझधार  में   यूँ   नहाना  हुआ

****
जब  पिघलने  लगे  ठूँठ  बरसात में
घाव  अपना  भी  ताजा  पुराना हुआ

****
देख  खुशियाँ  किसी की न आँसू बहे
दर्द  अपना  भी  शायद  सयाना हुआ

****
जब  नजर  जाति  धर्मों  की  टेड़ी  हुई
प्यार  का  सच भी  जैसे  फसाना हुआ

****
छोड़ रश्मों की खातिर  जिसे  कल गए
राह उसकी  ही  फिर  आज आना हुआ

****
इस नगर में तो मुश्किल हैं तनहाइयाँ
छाग-ए-दामन  सा आँसू छिपाना हुआ

****
ठोकरें  तो   बहुत   दी  हमें   राह   ने
दर्द  बिन  घाव  ही  पर  कमाना हुआ

****
 ( रचना - 25 दिसम्बर 14 )
मौलिक और अप्रकाशित
 ( प्रबुद्धजनों से कमजोर असआरों पर सुझाव आमंत्रित हैं )

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:54am

आ0 भाई विजय शंकर जी स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:52am

आ0 भाई गिरिराज जी,ग़ज़ल पर उपस्थिति से इसका मान बढ़ने के  लिए हार्दिक  धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:43am

आ0 भाई मिथिलेश जी,ग़ज़ल की प्रसंशा और टंकण त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए  हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:40am

आ0 भाई  गुमनाम जी,ग़ज़ल की प्रसंशा कर उत्साहवर्धन  लिए आभर .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:39am

आ0 भाई हरी प्रकाश  जी,ग़ज़ल की प्रसंशा कर उत्साहवर्धन लिए हर्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:35am

आ0 भाई श्याम नारायण जी,ग़ज़ल के अनुमोदन और प्रसंशा के लिए आभार .

Comment by somesh kumar on January 12, 2015 at 11:02pm

गज़ल का हर शे'र और उनके गहरे अर्थ ,बहुत खुबसुरत कोशिश है आप की |

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 12, 2015 at 10:24pm
मिल भॅवर से स्वयं किश्तियाँ तोड़ दी
बीच मझधार में यूँ नहाना हुआ
क्या बात है, बहुत बहुत बधाई , आदरणीय लक्षमण धामी जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 9:22pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:09pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करे।
रश्मों को रस्मों टंकण त्रुटि

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
13 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service