For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!

1222 1222 1222 1222

मेरी कुछ भी न गलती थी मगर दुश्मन जमाना था!
जमाने को मुझे मुजरिम का यह चोला उढ़ाना था!!

मेरे हाथों में बन्दूकें कहाँ थी दोस्त मेरे तब!
मैं तो बच्चों का टीचर था मेरा मकसद पढ़ाना था!!

हजारों कोशिशे की बात मैनें टालने की पर!
कहाँ टलती? रकीबों को तो मेरा घर जलाना था!!

मेरा भी था कली सा एक नन्हा,फूल सा बेटा!
वही मेरा सहारा था वही मेरा खजाना था!!

उतर आये लिये हथियार घर में जब अधर्मी वें!
कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!!








मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 1514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 11:37am
आदरणीय खुर्शीद सर समझाने की आपकी फ़ार्मूला विधि बहुत अच्छी है। मैं पाठ 1 तो भूल ही गया था अपनी टिप्पणी में। याद रखने का नायाब तरीका है। ये मेरे भी उतने ही काम का है। इस टिप्पणी को मैं अपने पास अलग से सेव कर रहा हूँ। बहुत बहुत आभार।
Comment by khursheed khairadi on December 30, 2014 at 11:22am

आदरणीय राहुल डांगी साहब मैं और आप तो ग़ज़ल के साधक भर हैं ,इसी पोर्टल पर हमारे अग्रजों का ज्ञान काफ़ी समृद्ध है |इस पोर्टल पर ग़ज़ल पोस्ट करने से हमें हमारे अग्रजों की बहुमूल्य इस्लाह प्रसाद स्वरूप सहज मिल जाती है और हमारे लेखन में उत्तरोत्तर निखार  आता रहता है |इस मंच पर ग़ज़ल की कक्षा लिंक पर भी काफ़ी जानकारी संकलित है |

१.यदि सालिम रुक्न को Rs लिखें तथा रुक्न की आवर्ती \दोहराव को N से लिखें तो सालिम मुफरद बहर का सूत्र Rs x N बनता है ,उदहारण के तौर पर आपकी ग़ज़ल में हजज (मुफ़ा इलुन =१२-२२ ) का चार बार दोहराव हुआ है अत; Rs=हजज  N= 4

N=1---मुसना ,N=2---मुरब्बा ,N=3----मुसद्दस , N=4---मुसम्मन  अत: यह एक बहुप्रचलित बह्र है -बहरे-हजज-मुसम्मन यानि 

१२-२२ x 4 , मेरे अल्पज्ञान को आदरणीय मिथिलेश साहब ने अपनी टिप्पणी में विस्तार दे ही दिया है 

२. सदर =ऊला मिसरे का पहला रुक्न =S     अरूज़=ऊला मिसरे का आखरी रुक्न=U , लिखें 

इब्तिदा=सानी मिसरे का पहला रुक्न=I ,   जरब=सानी  मिसरे का आखरी रुक्न= Z    लिखें 

हश्व = S-U  तथा I-Z  के बीच आने वाले सभी रुक्न ह्श्वैन होंगे =H , लिखें  तो एक शेर का निम्न सूत्र बनता है 

 S--H xN--U

 I--H xN--Z   आपकी ग़ज़ल में S--H--H--U \ I--H--H--Z  है |

आदरणीय मंच से विन्रम निवेदन है कि मैंने यहाँ केवल आदरणीय राहुल जी के निवेदन का मान  रखने के लिए अपनी समझ के दायरे की जानकारी दी है , आप इसमें त्रुटि -संशोधन द्वारा मेरा एवं राहुल जी का ज्ञानवर्धन करेगे तो हमारा अवश्य हित होगा |क्षमा सहित -

सादर |

Comment by somesh kumar on December 30, 2014 at 10:41am

इतनी लम्बी गज़ल लिखना एक दुसाहस है भाई जी !परंतु कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती |

गहराई में उतरोगे तो साँसे भी घूट जाएंगी 

पर मोती को पाना है तो ये पीड़ा सहनी होगी 

आपके प्रयास पे आपकों हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 29, 2014 at 11:06pm

 आ. राहुल जी ,हार्दिक बधाई आपको इस रचना के लिए !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 29, 2014 at 10:35pm

आदरणीय राहुल जी आपकी रचना पर बहुत सार्थक चर्चाएँ हुईं है शेर दर शेर आप सुधार करते हुए ग़ज़ल लिखें तो रचना सार्थक बन पड़ेगी प्रयास के लिये बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 10:25pm

आदरणीय राहुल भाई , गज़ल के भाव शे र दर शे र अच्छे हैं , आपको हार्दिक बधाई । बाक़ी बातें सब आदरणीय मिथिलेश भाई कह चुके हैं , उनकी बातों पर ध्यान दीजियेगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 9:50pm

आदरणीय राहुल दांगी जी, आपने ग़ज़लों की दुनिया की सबसे मकबूल और सबसे सुरीली बह्र में ग़ज़ल लिखने (कहने का नहीं) का प्रयास किया है ... बह्र-ए-हज़ज... जिसका शाब्दिक अर्थ है सुरीला...ये बह्र वाकई बहुत सुरीली है. यही कारण है कि हिंदी फ़िल्मी गीतों में इस बह्र का बहुत प्रयोग हुआ है. ये एक ऐसी बह्र है जिससे कई रचनाकार ग़ज़ल कहने की शुरुआत करते है और ये सबसे प्रचलित बह्र भी है.. शायद ही कोई शायर होगा जिसने इस बह्र में ग़ज़ल न कही हो ... लम्बी बह्रों में  सबसे आसान बह्र भी है ... आपने पूरी ग़ज़ल में शायरी न कर केवल बह्र निभाने का प्रयास किया है जिसमे वैसे सफल नहीं हो पाए जैसा होना चाहिए था. इस ग़ज़ल को भूत काल में लिखना ही मेरे हिसाब से बहुत ग़ज़ल कहने को कठिन कर गया. जमाना था, बताना था, जलाना था, निभाना था आदि जैसे मतले का अशआर को ले

 

मेरी कुछ भी न गलती थी मगर दुश्मन जमाना था!
मुझे कातिल बनाना था मुझे मुजरिम बनाना था!!

 

जमाना दुश्मन था, मुझे कातिल बनाना था, मुजरिम बनाना था..... अशआर के दोनों मिसरों में सम्बन्ध ही नहीं, मुझे का दोहराव अनावश्यक का हुआ और कातिल/मुजरिम दोनों में से एक ही काफ़ी है. अगर आपको उचित लगे तो इसे कुछ ऐसा कहते तो बेहतर होता-

 

जाने क्यूं सदाक़त में यहाँ दुश्मन जमाना है

सभी ने ठान रक्खा है मुझे कातिल बताना है

ऐसे ही दूसरा शेर के //मैं तो बच्चों का टीचर था मेरा तो काम पढ़ाना था// मिसरे में मात्रा गिराने की सारी छूट के बाद भी मिसरा बेबह्र हो रहा है. //मेरा तो काम पढ़ाना था// में काम पढ़ाना था की मात्रा 21-1222 हो रही है ये चूक इस बह्र में भूल से भी नहीं होनी चाहिए भाई जी.

 

मेरे हाथों में बन्दूकें कहाँ थी दोस्त मेरे तब!
मैं तो बच्चों का टीचर था मेरा तो काम पढ़ाना था!!

 

मैंने सुधारने का प्रयास किया पर शेरियत नहीं ला पाया फिर भी मात्राओं के लिहाज़ से लिख रहा हूँ इसमें अंडरलाइन चिन्हित में मात्रा गिराई गई है -

 

सुनो ताक़त कलम मेरी, है दौलत हौसला मेरा

हूँ टीचर, काम मेरा होनहारों को पढ़ाना है

 

अगला शेर ले -

मैनें तो लाख कोशिश की थी सब कुछ टालने की दोस्त! ...  पूरा बेबह्र है
मगर मेरे रकीबों को तो मेरा घर जलाना था!!

 

इस अशआर में कहना क्या है और अर्थ क्या निकल रहा है .... मैं समझ नहीं पाया.... हम नए सीखने वाले रकीबों को शायरी से दूर रखे तो बेहतर है भाई जी.

मेरा भी एक छोटा सा नशेमन था मेरे यारों!
जिसे मेरा सहारा था जिसे मुझको बचाना था!!.... ठीक है

//दुशासन थे शकूनी थे, थे दुर्योधन मेरे दुश्मन!
रकीबों से किसी सूरत भी मुश्किल घर बचाना था!!

मेरा किस्सा महाभारत है घर जाकर जरा पढ़ना!
मगर इन कौरवों में तो पितामह भी निभाना था!!

गली मौहल्ला सब कौरव थे और मैं एक था पांडव!
कि क्रष्णा भी मुझे इस युद्ध में तब बन के आना था!!// ये क्यों कहे गए है भाई जी समझ नहीं पाया

बहुत विष पी लिया था जब बहुत कुछ सह लिया था जब!.

कि तब जाके सुदर्शन को पडा मुझको उठाना था!!

 

विष पीने वाले पौराणिक प्रतीक का प्रयोग शिवजी के लिए होता है और सुदर्शन विष्णु जी या वासुदेव कृष्ण के लिए... अब दोनों मिसरों में सम्बन्ध बने तो कैसे बने... इसे प्रतीक सुदर्शन के लिए कुछ ऐसे कह सकते है -

 

क्षमा शिशुपाल को मिलती भला कब तक कहो यारो
किसी हद से परे तो फिर सुदर्शन को उठाना था


कि मैनें ईंट का बदला लिया पत्थर से जब यारों!
वो तब ऐसा ही मौसम था वो ऐसा ही जमाना था!!..... भाई जी ईट का जवाब पत्थर से देने का कभी कोई स्पेशल ज़माना नहीं हो सकता.

//मेरी किस्मत तो देखों तुम मैं इक आशिक भी हुँ यारों!
किसी की बेवफाई का मुझे गम भी उठाना था!!

मुझे उस पर भरोसा था वो ऐसी हो नहीं सकती!
मगर उस बेवफा को भी जमाने को हँसाना था!!// ..... इसमें कोई शायरी नहीं है भाई जी...

मैं किस किस को भला समझूं मैं किस किस को बुरा समझूं!---यहाँ किसको भला समझूं बता किसको बुरा कह दूं
वहाँ पर भी मिला धोखा जहाँ पर दोस्ताना था!!................... वहाँ पर भी मिला धोखा जहाँ पर दोस्ताना था

मुझे शूली चढ़ा दो तुम मुझे फाँसी लगा दो अब!
ये दिन जब से चला तब से पता है आज आना था!! ... इसमें कोई शायरी नहीं है भाई जी... इतनी सजा और यातना की मांग फिजूल है.

मुझे भी थी बडी हसरत बडा कुछ बन के दिखलाऊं!
मगर 'राहुल' विधाता को मुझे यह दिन दिखाना था!!...... शायरी नहीं पर बह्र सही

 

इस बह्र में आदरणीया राजेश कुमारी जी ने बहुत ही उम्दा गज़लें कही है इसी मंच पर उपलब्ध है ... इसके अलावा भी इसी मंच पर इस बह्र में बहुत गज़लें है उन्हें जरूर पढ़े.. लाभ होगा भाई जी ... सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 7:46pm

दांगी जी

आपका प्रयास अच्छा है  i  अभी लम्बी गजल से परहेज करें और कसावट पर ध्यान दे i  सस्नेह i

Comment by Anurag Prateek on December 29, 2014 at 5:51pm

गली मौहल्ला सब कौरव थे और मैं एक था पांडव!
कि क्रष्णा भी मुझे इस युद्ध में तब बन के आना था!!-- kya kah diya ?

Comment by Anurag Prateek on December 29, 2014 at 5:50pm

सर, शे’र का ख्याल ऐसा ही कि लगे किसी और ने न कहा हो. इतनी जगहों से  रवानी गायब है कि कष्ट होता है. तकती’अ करें और थोडा कस  दें. सरल वाक्य  होने से ऐसा हो सकता है . बेहतर है फिर से कहें--आराम से 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service