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किसी खामोश बैठी शायरी से : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

1222-1222-122

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अदावत क्या करे कोई किसी से
परेशां हर कोई जब ज़िन्दगी से

अकीदत आपकी सूरज से लेकिन
हमारी   बेरुखी  है  रौशनी  से

पसीना लफ्ज़ बनकर बह रहा है
किसी  खामोश  बैठी शायरी से

अता जिसको कभी शोहरत नहीं है
कहाँ  मिलते  है ऐसे  आदमी से

सदा सूरज के आगे क्यों सिमटती
किसी  ने  प्रश्न  पूछा चांदनी से

हुकूमत जुल्म किस पर कर रही है
सभी  खामोश  अपनी  बेबसी  से

नहीं  है  कौन  तेरा  तिश्नकामी
बचा  है  कौन  तेरी  तिश्नगी से

जरा मिथिलेश अब दिल से निकालो
मिटाया  नाम  जिसका डायरी  से

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(मौलिक व अप्रकाशित) -   © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 26, 2014 at 12:38am

आदरणीय सौरभ सर, इस ग़ज़ल के प्रत्येक शेर पर आपकी बधाइयाँ पाकर अभिभूत हूँ ... न केवल मेरा लिखना सार्थक हुआ, बल्कि मैं इन आशीर्वचनों से धन्य हो गया.... और क्या कहूं.... बस साहित्य मनीषी को नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 25, 2014 at 11:08pm

आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी इस ग़ज़ल के प्रत्येक शेर पर दिल से बधाइयाँ दे रहा हूँ.
बहुत खूब !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 6:06pm
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आपको ये प्रयास पसंद आया, हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 5:54pm

जरा मिथिलेश अब दिल से निकालो
मिटाया  नाम  जिसका डायरी  से......बहुत खूब  मिथिलेश जी ,बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 5:46pm
आदरणीय बागी सर धन्यवाद। ग़ज़ल में 122 के वज़्न पे ही लिया है पर बस एक सवाल उठा मन में।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2014 at 5:39pm

परेशां = 122 

होना चाहिए .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 5:11pm
परेशां की मात्रा गणना 122 होगी या 1221 ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 10:01pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by दिनेश कुमार on December 24, 2014 at 9:45pm
बेहतरीन गजल। वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2014 at 7:13pm
आदरणीय गुमनाम सर आपकी सराहना और प्रशंसा से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार।

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