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गीत - आने वाला नया, नया कब रह पाता है ( गिरिराज भंडारी )

नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है

नया जागता तब है जब पिछला सोता है 

पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है

हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें 

वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें

वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी

वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी हैं

वही बांटते नफरत सारे आतंकी हैं

वही बात में शांति, होड़ है हथियारों की

स्वेत कबूतर ऐसे में कब उड़ पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

कब तक पतझड़ झेलें, कब तक आस रखें हम

पागल बाग उजाड़े , औ मधुमास तकें हम 

खुद से लड़ के झड़ते पत्ते सिर्फ लखें हम

पत्तों का विद्रोह वृक्ष कब सह पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

ऐसे में किस पल को बोलो नया कहूँ मैं

जब हर नव-पल वही पुराना दर्द सहूँ मै

कब तक भीतर-भीतर, कितना और दहूँ मै

नव वर्ष बधाई दिल मेरा न दे पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 6:42pm

ऐसे में किस पल को बोलो नया कहूँ मैं
जब हर नव-पल वही पुराना दर्द सहूँ मै
कब तक भीतर-भीतर, कितना और दहूँ मै
नव वर्ष बधाई दिल मेरा न दे पाता है
वाह आदरणीय गिरिराज जी इस आंतरिक अंतर्द्वन्द को दर्शाते भावुक गीत की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 21, 2014 at 5:57pm
बहुत ही सुन्दर गीत है। बधाई आपको।

अंतिम अन्तरे में एक छोटा सा सुझाव
हर नव पल 'का' वही पुराना दर्द सहूँ मैं
Comment by Hari Prakash Dubey on December 21, 2014 at 5:19pm

नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है

नया जागता तब है जब पिछला सोता है...एक अलग तरह की सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 21, 2014 at 4:35pm

आदरनीय हरि वल्लभ भाई , गीत की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका हार्दिक आभार  ॥

Comment by harivallabh sharma on December 21, 2014 at 4:10pm

वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें 

वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें

वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी

वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है....बीते साल  के घावों को सहलाते हुए नया साल आ जाता है..काहे का नया साल ..वही सब पुराना हाल..बहुत सुंदर सृजन...बधाई आदरणीय.

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