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परिमूढ़ प्रस्ताव

परिमूढ़ प्रस्ताव

अखबारों में विलुप्त तहों में दबी पड़ी

पुरानी अप्रभावी खबरों-सी बासी हुई

ज़िन्दगी

पन्ने नहीं पलटती

हाशियों के बीच

आशंकित, आतंकित, विरक्त

साँसें

जीने से कतराती

सो नहीं पातीं

हर दूसरी साँस में जाने कितने

निष्प्राण निर्विवेक प्रस्तावों को तोलते

तोड़ते-मोड़ते

मुरझाए फूल-सा मुँह लटकाए

ज़िन्दगी...

निरर्थक बेवक्त

उथल-पुथल में लटक रही

अनिर्णीत

खंडित

समस्त संकल्पों को आदतन त्यागकर

लौट आती है अविरत

यंत्रबद्ध एक ही परिमूढ़ अपाहिज प्रस्ताव पर

कि चलूँ, कुछ और चलूँ, देख लूँ

शायद मोड़ लेती हुई सड़क

की दूसरी ओर

इस बार .... शायद इस बार

बेहिसाब झुठलावा न हो

अकेलापन न हो

न हो उलझन

न भटकन ...

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on December 2, 2014 at 9:43am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by Priyanka singh on November 26, 2014 at 7:54pm

शायद इस बार

बेहिसाब झुठलावा न हो

अकेलापन न हो

न हो उलझन

न भटकन ...... प्यार है और डर भी ...अंदेशा भी ....न मिल पाने का....समझ न पाने का ......होता है प्यार में, साथ में, सम्बन्धों में ऐसा होता है पर ....दिल से दिल का रिश्ता हो तो ....इतना भय क्यूँ ....हक से हाथ बढ़ाएं ....सवाल करें ....जवाब मांगे ....यकीं करे प्रेम में सिर्फ प्रेम ही होता है बाकी कोई संदेह नहीं .....खुबसूरत रचना के लिए बधाई विजय सर ....आपकी लेखनी को नमन ...

Comment by savitamishra on November 26, 2014 at 6:20pm

बहुत खुबसुरत कविता...सादर  नमस्ते 

Comment by vijay nikore on November 26, 2014 at 5:21pm

//नमन आप की लेखनी को//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया मीना जी।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2014 at 12:22pm

आदरणीय निकोर सर ..इस गूढ गंभीर रचना के लिए तहे दिल बधाई  सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:52am

खबरों-सी बासी हुई

ज़िन्दगी

पन्ने नहीं पलटती...बहुत खूब सर ,हार्दिक बधाई !

Comment by vijay nikore on November 25, 2014 at 10:44am

//वाह अनुपम भावाभिव्यक्ति //

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय राम जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 25, 2014 at 9:15am
ज़िन्दगी
पन्ने नहीं पलटती
बहुत खूब , आदरणीय विजय निकोर जी , बधाई इस सुन्दर रचना के लिए।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2014 at 7:34pm

निकोर सर

प्रसन्नता हुयी की आप अपने किसी पुराने प्रेम  की कफस से इस बार आजाद  दिखे i पर भूत, वर्तमान और भविष्य आपको आशंकित ही करता है i प्रस्ताव कुछ सुखद भी परोस सकता है i यात्रा जारी रहे i  सादर i


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 3:26pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , तमाम निराशाओं के बाद भी कहीं आशा की किरण तलाशती ज़िन्दगी ! यही होता है , यही होना भी चाहिये । बहुत सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

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