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शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा (ग़ज़ल 'राज')

1222  1222   1222  1222

नहीं होता तो क्या होता अगर होगा तो क्या होगा

कभी तुमने बचाया क्या अभी खोया तो क्या होगा

 

जमाने को सिखाया है हुनर तुमने यही अब तक

वफ़ा करके कभी खुद को मिले धोखा तो क्या होगा 

 

किसी की जिन्दगी में तुम उजाला कर नहीं सकते

अगर खुर्शीद भी दिन में न अब जागा तो क्या होगा 

 

चले हो आबशारों को जलाने आग से अपनी

समंदर ने तुम्हारा रास्ता रोका तो क्या होगा 

 

लिए वो हाथ में पत्थर कभी फेंका था जो तुमने 

तुम्हारा आईना दिल का  अगर टूटा तो क्या होगा 

 

बरी हो तुम भले  ही आज  अपने इन गुनाहों से

अदालत से ख़ुदा की फेंसला आया तो क्या होगा

 

बहुत बर्दाश्त करता है न कहता कुछ जुबाँ से वो

शजर की हाय ही काफ़ी अगर बोला तो क्या होगा

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 12:11pm

वाह वाह वाह !! मोती जड़ दिए अश'आर में मा० राजेश कुमारी जी। शेअर मुकम्मिल और दिल में उतरने की कैफियत का हुआ है। बहुत बहुत बधाई स्वीकारें इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 19, 2014 at 9:52am

आदरणीया राजेश जी , बहुत बेहतरीन ग़ज़्ल कही है ! हर शे र अपना जवाब खुद है , वाह ! दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by somesh kumar on November 19, 2014 at 8:49am

सुंदर गज़ल के लिए बधाई ,दीदी 

Comment by pooja yadav on November 19, 2014 at 8:46am
/फैसला खुद की अदालत से आया तो क्या होगा/ बहुत खूब।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 19, 2014 at 7:38am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है दीदी हर शे'र पसंद आया दिल से दाद दे रहा हूँ कूबूल फरमाएँ

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